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________________ 338] [निशीपसूत्र 4. राजसभा-राजा की सभा में या कहीं भी राजा के पास जाने के समय पहने जाने वाले वस्त्रों को चौथे भेद में कहा गया है / इनमें से किसी प्रकार के वस्त्र को ग्रहण करना हो तो भिक्षु उस वस्त्र के विषय में पूछताछ करके यह जानकारी कर ले कि यह वस्त्र किसी भी उदगम आदि दोष से युक्त तो नहीं है, पूर्ण रूप से निर्दोष है ? ऐसी जानकारी करके ही उसे ग्रहण करे / बिना जानकारी किये लेने पर स्थापना, अभिहृत, क्रीत, अनिसृष्ट आदि अनेक दोषों के लगने की संभावना रहती है। प्रौद्देशिक या पश्चात्कर्म दोष भी लग सकता है / अत: ये चारों प्रकार के वस्त्र याचना प्राप्त हों या निमंत्रणा से प्राप्त हों तो इनके संबंध में आवश्यक पूछताछ-गवेषणा न करने का इस सूत्र में प्रायश्चित्त कहा गया है। इसलिए भिक्षु को वस्त्र के संबंध में सावधानी पूर्वक गवेषणा करनी चाहिए / वस्त्र के कथन से अन्य भी पात्र आदि उपकरणों के संबंध में गवेषणा करने की आवश्यकता और प्रायश्चित्त समझ लेना चाहिए। विभूषार्थ शरीर के परिकर्म करने का प्रायश्चित्त 99.152. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणोपाए आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा साइज्जइ एवं तइय उद्देसग गमेण प्रेयव्वं जाव जे भिक्खू विभूसावडियाए गामाणुगाम दूइज्जमाणे अप्पणो सीसदुवारियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ / 99-152. जो भिक्षु विभूषा के लिये अपने पांवों का एक बार या बार-बार "आमर्जन" करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है, इस प्रकार तीसरे उद्देशक के (सत्र 16 से 69 तक के) समान पूरा आलापक जानना यावत् जो भिक्षु विभूषा के लिये ग्रामानुग्राम विहार करते समय अपने मस्तक को ढंकता है या ढंकने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन-उद्देशक तीन के समान इन 54 सूत्रों का विवेचन समझ लेना चाहिए / यहाँ विभूषा के विचारों से ये कार्य करने पर लघुचौमासी प्रायश्चित्त कहा गया है, इतना ही अंतर है। विभूषा हेतु उपकरण धारण एवं प्रक्षालन का प्रायश्चित्त 153. जे भिक्खू विभूसावडियाए वत्यं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा अण्णयरं वा उवगरणजायं धरेइ, धरतं वा साइज्जइ। 154. जे भिक्खू विभूसावडियाए वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पायछणं वा अण्णयरं वा उवगरणजायं धोवेइ, धोवंतं वा साइज्जइ। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मसियं परिहारट्ठाणं उग्धाइयं / 153. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से वस्त्र, पात्र, कंबल, पादपोंछन या अन्य कोई भी उपकरण रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है / 154. जो भिक्ष विभूषा के संकल्प से वस्त्र, पात्र, कंबल, पादपोंछन या अन्य कोई भी उपकरण धोता है या धोने वाले का अनुमोदन करता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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