SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 324] . [निशीयसूत्र भी कहीं मार्ग में मिल जाए तो वहां भी उससे पात्र की याचना नहीं करनी चाहिए। क्योंकि वह यदि अनुरागी है तो ऐसा करने में एषणा के दोष लगने की सम्भावना रहती है और यदि वह अनुरागी नहीं है तो अन्य स्थान में मांगने से रुष्ट होकर वह अनादर कर सकता है अथवा पात्र होते हुए भी मना कर सकता है / अत: किसी से भी घर के अतिरिक्त अन्य किसी स्थान में या मार्ग में पात्र की याचना नहीं करनी चाहिए / कहा है यो परिषद् में बैठे हुए स्वजन आदि से पात्र की याचना करने का प्रायश्चित्त 39. जे भिक्खू णायगं बा, अणायगं बा, उवासगं वा, अणुवासगं वा परिसामझाओ उद्ववेत्ता पडिग्गहं ओभासिय-ओभासिय जायइ, जायंत वा साइज्जइ / 39. जो भिक्ष स्वजन को या अन्य को, उपासक को या अनुपासक को परिषद् में से उठाकर उससे मांग-मांग कर पात्र की याचना करता है या याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। [उसे लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है / ] विवेचन-पूर्व सूत्र में किसी भी गृहस्थ से अन्य स्थान में पात्र याचना करने का प्रायश्चित्त र इस सूत्र में पात्रदाता के स्वगह में होते हुए भी यदि वह किसी एक व्यक्ति से या अनेक व्यक्तियों से बातचीत कर रहा हो या किसी परिषद् में बैठा हो तो वहां से उसे उठाकर पात्र की याचना करने का प्रायश्चित्त कहा है / / ऐसा करने पर उनके आवश्यक वार्तालाप में रुकावट हो जाती है, दाता या अन्य व्यक्ति रुष्ट हो सकते हैं / साधु के प्रति या धर्म के प्रति श्रद्धा हो सकती है। दाता वार्तालाप में व्यस्त होता है, अतः वह पात्र होते हुए भी देने के लिये मना कर सकता है। ऐसे समय में भिक्षु को विवेक से याचना करनी चाहिये / भिक्षु को यदि पात्र की शीघ्र आवश्यकता हो तो वह कुछ समय तक एकान्त में खड़ा रह कर अनुकूल अवसर की प्रतीक्षा करे या अन्य किसी समय में याचना के लिए आ जाए। यदि साधु के आने की जानकारी होते ही गृहस्थ स्वयं बातचीत छोड़कर पा जाए तो विवेक रखते हुए उससे पात्र की याचना करने पर सूत्रोक्त प्रायश्चित्त नहीं आता है / पात्र के लिये भिक्षु को निवास करने का प्रायश्चित्त 40. जे भिक्खू पडिग्गह-नीसाए उडुबद्धं वसइ, वसंतं वा साइज्जइ / 41. जे भिक्खू पडिग्गह-नीसाए वासावासं वसइ, वसंतं वा साइज्जइ / __तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं / 40. जो भिक्षु पात्र के लिए ऋतुबद्ध काल [सर्दी या गर्मी] में रहता है या रहने वाले का अनुमोदन करता है। 41. जो भिक्षु पात्र के लिए वर्षावास में रहता है या रहने वाले का अनुमोदन करता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy