SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 423
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौदहवां उद्देशक] [323 इन 6 सूत्रों का क्रम भिन्न-भिन्न तरह से उपलब्ध होता है तथा सूत्र-संख्या में भी भिन्नती मिलती है। यहां भाष्य-चूणि के अनुसार क्रम रखा गया है / लकड़ी और तुम्बे के पात्र में अग्निकाय का रखा जाना सम्भव नहीं है। अतः यह अग्निकाय का प्रायश्चित्त कथन केवल मिट्टी के पात्र की अपेक्षा से समझना चाहिये। इस प्रकार के पात्र लेने में उन जीवों को स्थानान्तरित किया जाता है तथा उनका संघटन, सम्मर्दन भी होता है। इसलिये ऐसे पात्र लेने का प्रायश्चित्त कहा है। पात्र कोरने का प्रायश्चित्त 37. जे भिक्खू पडिग्गहं कोरेइ, कोरावेइ, कोरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ। 37. जो भिक्षु पात्र को कोरता है, कोरवाता है अथवा कोरकर देते हुए को लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। [उसे लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त पाता है।। विवेचन -प्रथम उद्देशक में पात्र का मुख ठीक करने का तथा विषम को सम बनाने रूप परिकर्म का प्रायश्चित्त कथन है। अन्य परिकर्मों का इस उद्देशक में प्रायश्चित्त कहा गया है और यहां इस ३७वें सूत्र में पात्र पर कोरनी करने का प्रायश्चित्त कहा है। पात्र में कोरनी, खुदाई करने से होती है। ऐसा करने में मुख्य उद्देश्य विभूषा का रहता है और विभूषावृत्ति भिक्षु के लिये दशवकालिक आदि सूत्रों में निषिद्ध है / भाष्यकार ने इसमें "झुषिर दोष" कहा है, क्योंकि कोरणी के लिये खुदाई किये स्थान में जीव या पाहार के लेप का भलीभांति शोधन नहीं हो सकता है। अतः ऐसा करने का यहां प्रायश्चित्त कहा गया है। मार्ग प्रादि में पात्र की याचना करने का प्रायश्चित्त 38. जे भिक्खू णायगं वा, अणायगं वा, उवासगं वा, अणुवासगं वा गामंतरंसि वा, गामपहंतरंसि वा पडिग्गहं ओभासिय-ओभासिय जायइ, जायंतं वा साइज्जइ / 38. जो भिक्षु स्वजन से या अन्य से, उपासक से या अनुपासक से ग्राम में या ग्रामपथ में पात्र मांग-मांग कर याचना करता है या याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। [उसे लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। विवेचन-~-पात्र की याचना पारिवारिक या अपारिवारिक गृहस्थों से भी की जा सकती है। ऐसे गृहस्थ उपासक भी हो सकते हैं और अनुपासक भी हो सकते हैं। अत: विशेष स्पष्ट करने के लिये इस सूत्र में ज्ञातिजन आदि चार प्रकार के व्यक्तियों का कथन है। किसी भी गृहस्थ से पात्र की याचना करनी हो तो पहले यह देखना चाहिए कि वह अपने घर में या अपने ही किसी अन्य स्थान में है, तो उसी समय उससे पात्र की याचना करनी चाहिए। किन्तु वह ग्राम से बाहर हो या अन्य ग्राम में हो तो उससे याचना नहीं करनी चाहिए तथा ग्राम में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy