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________________ चौवहवाँ उद्देशक] [325 __इन 41 सूत्रों में कहे गये स्थानों का सेवन करने वाले को लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। विवेचन-भिक्षु यदि गृहस्थ को यह कहे कि 'हम पात्र के लिये ही मासकल्प ठहरे हैं या चौमासा करते हैं, अतः हमें अच्छे पात्र देना या दिलाना' ऐसा निश्चय करना, यह पात्र के लिये निवास करना है और इसका ही दोनों सूत्रों में प्रायश्चित्त कहा गया है। कदाचित् भिक्ष यदि पात्र की अत्यन्त प्रावश्यकता होने के कारण कहीं कुछ दिन ठहर भी जाए और गृहस्थ से पात्र के निमित्त उपयुक्त वार्ता नहीं करे तो उसे सूत्रोक्त प्रायश्चित्त नहीं आता है। पात्र के निमित्त ठहरने का संकल्प एवं गृहस्थ से उपयुक्त वार्ता करके ठहरने पर कभी दैवयोग से वहां पात्र न मिले तो साधु को या गृहस्थ को अनेक प्रकार के संकल्प-विकल्प उत्पन्न हो सकते हैं / वह गृहस्थ यदि अनुरागी होगा तो अनेक प्रकार के दोष लगाकर भी पात्र देगा या दिलवायेगा, इससे संयम की विराधना होगी। अतः ऐसे संकल्प से भिक्षु को किसी क्षेत्र में निवास नहीं करना चाहिए। चौदहवें उद्देशक का सारांशसूत्र 1 पात्र खरीदना या खरीद कर लाया हुआ पात्र लेना, पात्र उधार लेना या उधार लाया हुआ पात्र लेना, पात्र का परिवर्तन करना या परिवर्तन कर लाया हुआ पात्र लेना, छोना हुआ पात्र, भागीदार की बिना प्राज्ञा लाया हुअा पात्र या सामने लाया हुआ पात्र लेना, प्राचार्य की आज्ञा के बिना किसी को अतिरिक्त पात्र देना, अविकलांग को या समर्थ को अतिरिक्त पात्र देना, विकलांग या असमर्थ को अतिरिक्त पात्र न देना, 8-9 उपयोग में न पाने योग्य पात्र को रखना, उपयोग में आने योग्य पात्र को छोड़ देना, 10-11 सुन्दर पात्र को विद्रूप करना या विद्रूप पात्र को सुन्दर करना, 12-19 पुराने पात्र को या दुर्गन्ध युक्त पात्र को बारंबार धोना या कल्कादि लगाना अथवा अनेक दिनों तक पानी आदि भरकर रात में रखना एवं उसे ठीक करना, 20-30 सचित्त स्थान, त्रस जीव युक्त स्थान अथवा बिना दिवाल वाले स्थान पर पात्र सुखाना, 31-36 पात्र में त्रस जीव, धान्य बीज, कंदादि, पृथ्वी, पानी या अग्नि हो, उसे निकालकर पात्र लेना, पात्र पर कोरणी करना या कोरणी वाला पात्र लेना, 38-39 अन्य स्थान में स्थित गृहस्थ से या किसी के साथ विचार-चर्चा करने वाले गहस्थ से पात्र की याचना करना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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