________________ 270] [निशीथसूत्र 5. महिष (भैसों) का युद्ध, 6. मेंढों का युद्ध, 7. कुक्कुटयुद्ध, 8. मर्कटयुद्ध, 9. लावकयुद्ध, 10. बत्तखयुद्ध, 11. तित्तिरयुद्ध, 12. कपोतयुद्ध, 13. चातकयुद्ध, 14. सर्प-(नेवले) का युद्ध, 15. शूकरयुद्ध आदि किसी भी प्रकार के युद्ध को देखने के लिये जाता है या जाने वाले का अनुमोदन करता है। 24. जो भिक्षु-१. विवाह-मंडप, 2. अश्व-यूथ (समूह) का स्थल, 3. गज-यूथ-स्थल, 4. सेना समुदाय अथवा 5. वधस्थान पर ले जाते हुए चोरादि को देखने लिये जाता है या जाने वाले का अनुमोदन करता है। 25. जो भिक्षु-१. सभास्थल (भाषण के स्थान), 2. धान्यादि के माप-तौल आदि का स्थल, 3. महान् शब्द करते हुए बजाये जाते वाद्य-नृत्य-गीत-तंत्री-तल-ताल-त्रुटित-घण-मृदंग आदि बजाने के स्थलों को देखने के लिये जाता है या जाने वाले का अनुमोदन करता है। 26. जो भिक्षु-१. सामान्यजन-कलह, 2. राजा, युवराज आदि का गृहकलह, 3. परशत्रु राजा का उपद्रव, 4. महायुद्ध (शस्त्रयुद्ध), 5. चतुरंगिणी सेना युक्त महासंग्राम, 6. जुआ खेलने के स्थल, 7. जन-समूह के स्थल को देखने के लिये जाता है या जाने वाले का अनुमोदन करता हैं / 27. जो भिक्षु-१. काष्ठ-कर्म, 2. पुस्तक-कर्म, 3. चित्र-कर्म, 4. मणि-कर्म, 5. दंत-कर्म, 6. फूलों को गूथकर मालादि बनाने का स्थल, 7. फूलों को वेष्टित करके माला आदि बनाने का स्थल, 8. रिक्त जगह को फूलों आदि से पूरित करने का स्थल, 9. फूलों को संग्रह करके गुच्छा आदि बनाने का स्थल, 10. अन्य भी विविध वेष्ट कर्मों के स्थलों को देखने के लिये जाता है या जाने वाले का अनुमोदन करता है। 28. जो भिक्षु अनेक प्रकार के महोत्सवों में जहां पर कि अनेक वृद्ध, युवक, बालक, पुरुष या स्त्रियां सामान्य वेष में या वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर गाते, बजाते, नाचते, हंसते, क्रीड़ा करते, मोहित करते, विपुल अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य आहार खाते या बांटते हों तो उन्हें देखने के लिये जाता है या जाने वाले का अनुमोदन करता है। 29. जो भिक्षु मेलों, पितृभोजस्थलों, इंद्रमहोत्सव यावत् प्रागरमहोत्सवों या अन्य भी ऐसे महोत्सवों को देखने के लिये जाता है या जाने वाले का अनुमोदन करता है। 30. जो भिक्षु अनेक बैलगाड़ियों, रथों, म्लेच्छ या लुटेरे आदि के महाप्राश्रव वाले (पाप) स्थानों को देखने के लिये जाता है या जाने वाले का अनुमोदन करता है / 31. जो भिक्षु इहलौकिक या पारलौकिक, देखे या बिना देखे, सुने या बिना सुने, जाने या अनजाने रूपों को देखने में आसक्त होता है, अनुरक्त होता है, गृद्ध होता है, मूच्छित होता है या आसक्त, अनुरक्त, गृद्ध और मूच्छित होने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त पाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org