SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारहवां उद्देशक] [271 विवेचन कतिपय शब्दों की व्याख्या१. वप्पो---केदारो-खेत या क्यारियां / तोरणा-रण्णोदुवारादिसु--राजा के किले के द्वार पर लगे हुए कोरणी युक्त मंडपाकार पत्थर आदि / अग्गल-पासगा-अर्गला जिसमें फंसाई जाती है, वह अर्गलाघर अर्थात् भित्ति का पार्श्वभाग / णम-गिहं-भूमिघरं-भोयरा, तलघर आदि / रुक्खगिह-रुक्खोच्चिय मिहागारो, रुक्खे वा गिहं कडं-वृक्षाकार गृह या वृक्ष के पाश्रय से बना हुआ घर। रुक्खं वा चेइय कडं-वृक्षस्य अधो व्यंतरादि स्थलक–देवाधिष्ठित वृक्ष / थूभं वा चेइय कडं-व्यन्तरादि-कृतं--देवाधिष्ठित स्तूप / आवेसण-लोहारकुट्टी-लोहारशाला। आयतणं-लोगसमवायठाणं-चौपाल / पणिय-गिह-साला--जत्थ भण्डं अच्छति तं पणियगिहं-दुकान / जत्थ विक्काइ सा साला- अहवा सकुड्ड गिह, अकुड्डा साला-जहां माल बेचा जाय वह शाला अथवा दीवाल सहित हो वह घर और बिना दीवाल को हो वह शाला / थम्भों पर टिकी हुई छत वाली शाला। गिरिगुहा-कंदरा-गुफा / भवण-गिह-वणराइय मंडियंभवणं, वण-विवज्जियं गिह-जो वन-राजि से युक्त हो वह भवन, जो वन रहित हो वह गृह / सूत्र 16 के पाठ में 'उप्पलाणि, पललाणि, उज्झराणि, णिज्जराणि' शब्द अधिक मिलते हैं, जिनका प्राचारांग टीका, प्राचारांगचूणि व निशीथचूणि में कोई संकेत भी नहीं मिलता है तथा जिस क्रम के बीच में ये चार नाम हैं, वहां ये उपयुक्त भी नहीं हैं। ये चारों शब्द 'वप्पाणि वा फलिहाणि वा' के बाद में हैं / जब कि आचारांगसूत्र में अनेक जगह वप्पाणि, फलिहाणि के बाद 'पागाराणि वा' पाठ मिलता है तथा निशीथचूर्णिकार ने भी इस सूत्र की व्याख्या में वप्पाणि, फलिहाणि के बाद पागाराणि की ही व्याख्या की है। यहां प्राचारांग श्रु. 2 अ. 3 उ. 3 एवं अ. 4 उ. 2 तथा निशीथचूणि के अनुसार मूल पाठ रखा गया है / निशीथसूत्र में उपलब्ध इस सोलहवें सूत्र का व इसके आगे के १७वें सूत्र का पाठ चूणि (व्याख्या) के बाद लिपिदोष से अशुद्ध हो गया है, ऐसा स्पष्ट ज्ञात होता है। 2. कच्छा-नद्यासन्न निम्नप्रदेशा, मूलकवालुकादि वाटिका। इक्खुमादि कच्छा-नदी के निकट का नीचा भूभाग, मूला, बैंगन आदि की वाडी, ईख आदि का खेत / दवियाणि-घास का जंगल, वन में घास के लिये अवरुद्ध भूमि / गहणाणि-काननानि, निर्जल प्रदेशो अरण्यक्षेत्रम्-जलहीन वन्यप्रदेश / समवृत्ता वापी, चाउरसा-पुक्खरणी, एताओ चेव दीहियारो दीहिया, मंडलिसंठियायो अन्नोन्त कवाडसंजुत्तामो गुजालिया भण्णति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy