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________________ दसवां उद्देशक] [207 27. जे भिक्खू उग्गय-वित्तीए अणत्यमिय-संकप्पे असंथडिए निम्वितिगिच्छासमावण्णणं अप्पाणणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे, अह पुण एवं जाणेज्जा--"अणुग्गए सूरिए, अत्थमिए वा," से जं च मुहे, जं च पाणिसि. जं च पडिग्गहे, तं विगिचेमाणे विसोहेमाणे नाइक्कमइ, जो तं भुजइ, भुजंतं वा साइज्जइ। 28. जे भिक्खू उग्गय-वित्तीए अणथमिय-संकप्पे असंथडिए वितिगिच्छासमावण्णेणं अप्पागणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे, अह पुण एवं जाणेज्जा - "अणुग्गए, सूरिए, अत्थमिए वा" से जं च मुहे, जं च पाणिसि, जं च पडिग्गहे, तं विगिचेमाणे विसोहेमाणे नाइक्कमइ, जो तं भुजइ, भुजंतं साइज्जइ / 25. भिक्षु का सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के पूर्व आहार लाने का एवं खाने का संकल्प होता है / जो समर्थ भिक्षु संदेह रहित आत्मपरिणामों से अशन, पान, खाद्य या स्वाद ग्रहण करके खाता हुआ यह जाने कि "सूर्योदय नहीं हुआ है या सूर्यास्त हो गया है। उस समय जो आहार मुंह में या हाथ में लिया हुआ हो और जो पात्र में रखा हुआ हो उसे निकालकर परठता हुआ तथा मुख, हाथ व पात्र को पूर्ण विशुद्ध करता हुआ वह जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है / किन्तु जो उस शेष आहार को खाता है या खाने वाले का अनुमोदन करता है / 26. भिक्षु का सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के पूर्व आहार लाने व खाने का संकल्प होता है। जो समर्थ भिक्षु संदेहयुक्त आत्मपरिणामों से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण कर खाता हुआ यह जाने कि "सूर्योदय नहीं हुआ है या सूर्यास्त हो गया है" उस समय जो आहार मुख में या हाथ में लिया हुआ हो और पात्र में रखा हुआ हो, उसे निकालकर परठता हुमा तथा मुख, हाथ व पात्र को पूर्ण विशुद्ध करता हुआ जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है। किन्तु जो उस शेष आहार को खाता है या खाने वाले का अनुमोदन करता है। 27. भिक्षु का सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के पूर्व आहार लाने व खाने का संकल्प होता है / जो असमर्थ भिक्षु संदेहरहित आत्मपरिणामों से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करके खाता हुआ यह जाने कि "सूर्योदय नहीं हुआ है या सूर्यास्त हो गया है। उस समय जो आहार मुह में या हाथ में लिया हुआ हो और जो पात्र में रखा हो उसे निकालकर परठता हुआ तथा मुख, हाथ व पात्र को पूर्ण बिशुद्ध करता हा वह जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है। किन्तु जो उस शेष आहार को खाता है या खाने वाले का अनुमोदन करता है। 28. भिक्षु का सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के पूर्व प्राहार लाने व खाने का संकल्प होता है / जो असमर्थ भिक्षु संदेहयुक्त प्रात्मपरिणामों से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण कर खाता हुआ यह जाने कि "सूर्योदय नहीं हुआ है या सूर्यास्त हो गया है" उस समय जो आहार मुह में या हाथ में लिया हुआ हो और जो पात्र में रखा हुआ हो, उसे निकालकर परठता हुआ तथा मुख, हाथ व पात्र को पूर्ण विशुद्ध करता हुआ वह जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है। किन्तु जोउस आहार को खाता है या खाने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त प्राता।) विवेचन-इन चारों सूत्रों में समर्थ-असमर्थ, संदेहरहित-संदेहयुक्त' की चौभंगी की गई है-- 1. समर्थ साधु संदेहरहित होकर आहार ग्रहण करता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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