________________ 174] [निशीथसूत्र 11. जाण-जुग्न.... 'जुगादि जाणाणं अकुड्डा साला सकुड्डं गिहं / अस्सादियाण वाहणा ताणं साला गिहं वा।' 12. परियागा--'पासंडिणो परियागा तेसि आवसहो साला गिह / ' भाष्य गाथा 2426 व 2428 में तथा चूर्णि में भी इस शब्द की व्याख्या की है / जब कि प्रथम सूत्र में 'परियावसहेसु" पाया है अतः पुनः कथन की आवश्यकता नहीं लगती है। 13. कुवियं-भाष्यकार ने इसकी व्याख्या नहीं की है। चूणिकार ने इस शब्द की जगह "कम्मिय साला" की व्याख्या की है / अन्यत्र 'कुविय" शब्द का अर्थ लोहे आदि के उपकरण बनाने की शाला होता है / चूणि में-'छुहादि जत्थ कम्मविज्जति सा कम्मंतशाला गिहं वा' इस प्रकार व्याख्या की गई है। 14. महागिह-महंतं गिहं महागिह = बड़ा घर या प्रधान घर / 15. महाकुलं-'इन्भकुलादि' 'बहुजणाइण्णं' / इन स्थानों के अतिरिक्त स्थानों का अर्थात् उपाश्रय आदि का ग्रहण भी उपलक्षण से समझ लेना चाहिये। उत्तरा. अ. 1 गा. 26 में भी अनेक स्थानों में अकेली स्त्री के साथ अकेले भिक्षु को खड़े रहने का एवं वार्तालाप करने का निषेध किया है / अतः अन्य स्त्री या पुरुष पास में हो तो ही भिक्षु स्त्री से वार्तालाप कर सकता है / अकेली स्त्री से भिक्षा लेने का एवं दर्शन करने उपाश्रय में आ जाय तो उसे मंगल पाठ सुनाने का निषेध नहीं समझना चाहिये। स्त्रीपरिषद में रात्रि-कथा करने का प्रायश्चित्त 10. जे भिक्खू राओ वा, वियाले वा, इथिमझगए, इस्थिसंसत्ते इत्थि-परिवूडे अपरिमाणाए कहं कहेइ, कहेंतं वा साइज्जइ / अर्थ--जो भिक्ष रात्रि में या संध्याकाल में 1. स्त्री परिषद् में, 2. स्त्रीयुक्त परिषद् में, 3. स्त्रियों से घिरा हुआ अपरिमित कथा कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त अाता है।) विवेचन आगमों में स्त्री-संसर्ग का निषेध होते हुए भी स्त्रियों को धर्मकथा कहने का सर्वथा निषेध नहीं किया है / अकेला साधु और अकेली स्त्री हो तो धर्मकथा आदि का निषेध अन्य सूत्रों में तथा उपर्युक्त सूत्रों में हुआ है / अनेक स्त्रियां या अनेक साधु हों तो उसका निषेध नहीं है। अर्थात अनेक स्त्रियां हो या पुरुष युक्त स्त्रियां हों तो दिन में धर्मकथा कही जा सकती है। फिर भी वय, योग्यता व गुरु की प्राज्ञा लेने का विवेक रखना आवश्यक है। प्रस्तुत सूत्र में गत्रि में धर्मकथा कहने का निषेध किया गया है / अतः रात्रि में केवल स्त्री परिषद् हो या पुरुष युक्त स्त्रीपरिषद् हो तो भी धर्मकथा नहीं कहनी चाहिये / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org