________________ आठवां उद्देशक] [173 के साथ बातचीत करना, खड़े रहना आदि नहीं करना चाहिये। स्त्रीसंसर्ग को दशकालिक सूत्र में तालपुटविष को उपमा दी गई है और शतायु स्त्री के साथ भी संसर्ग करने का निषेध किया गया है। भाष्य में कहा है.--- अवि मायरं पि सद्धि, कहा तु एगागियस्स पडिसिद्धा। किंपुण अणारियादि, तरुणित्थीहिं सहगयस्स // 2344 // चूणि---"माइभगिणिमादीहि अगममित्थीहि सद्धि एगाणिगस्स धम्मकहा वि काउं णं वति / कि पुण अण्णाहि तरुणित्थोहि सद्धि / " भावार्थ- वृद्ध माता या वहिन अादि यदि अकेली हो तो उसके साथ धर्मकथा भी करना नहीं कल्पता है तो तरुण व अन्य स्त्री के साथ अन्य कथा करने का निषेध तो स्वतः ही सिद्ध है। विशिष्ट शब्दों की व्याख्या इस प्रकार है 1. विहारं करेइ--यहां विहार का अर्थ साथ में रहना है / अतः ग्रामानुग्राम विहार करना अर्थ यहां नहीं समझना चाहिये। 2. उच्चारं वा पासवणं वा परिवेइ-'वियारभूमि गच्छति / ' 3. अणारियं आदि–'अणारिया--कामकहा, निरंतरं वा अप्रियं कहं कहेति-कामणिठ्ठरकहाओ, एता चेव असमणपाओग्गा।' 4. उज्जाणं—'जत्थ लोगा उज्जाणियाए बच्चति, जं वा ईसि नगरस्स उक्कंठं ठियं तं उज्जाणं / 'नगरात् प्रत्यासन्नवतियानवाहनक्रीडागृहादि / ' -रायप्पसेणिय सूत्र टीका // 5. णिज्जाणं-रायादियाण निग्गमणठाणं णिज्जाणिया, गगरनिगमे जं ठियं तं णिज्जाणं / एतेसु नेव गिहा कया-उज्जाण-णिज्जाण-गिहा।' 6. अटेंसि-प्रासादस्योपरिगृहे, प्राकारोपरिस्थसैन्यगृहे च / 7. अट्टालयंसि-प्राकारोपरिवति-आश्रयविशेषः। 'प्राकारकोष्टकोपरिवतिमंदिरः।' नगरे पागारो, तस्सेव देसे अट्टालगो। 'युद्ध करने के बुर्ज' 8. चरियसि–'नगरप्राकारयोरंतरे अष्टहस्तप्रमाणमार्गः।' पागारस्त अहो अट्टहत्थो रहमग्गो-चरिया / 9. गोपुर-प्रतोलिकाद्वारः। उतरा. अ. 9 // 'बलाणगं दारं दो बलाणगा पागारपडिबद्धा, ताण अंतरं गोपुरं।' 10. तण-तुस-भुस-'दब्भादि तणाणं अधोपगासं तणसाला, सालिमादितुसट्टाणं तुससाला मुग्गमादियाणं भुसा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org