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________________ वर्ग 2: प्रथम अध्ययन] [43 ___ सुधर्माप्रायुष्मन् जम्बू ! वह इस प्रकार है उस काल और उस समय में चम्पा नामक नगरी थी। (उसके उत्तर पूर्व में) पूर्णभद्र नामक चैत्य था। कूणिक वहाँ का राजा था। उसकी पद्मावती नामक पटरानी थी। उस चम्पा नगरी में श्रेणिक राजा की भार्या, कणिक राजा की विमाता काली नामक रानी थी, जो अतीव सुकुमार एवं स्त्री-उचित यावत् गुणों से सम्पन्न थी / उस कालो देवी का पुत्र काल नामक राजकुमार था। उस काल कुमार की पद्मावती नामक पत्नी थी, जो सुकोमल थी यावत् मानवीय भोगों को भोगती हुई समय व्यतीत कर रही थी। पद्मावती का स्वप्नदर्शन 2. तए णं सा पउमावई देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसर्गसि वासघरंसि अम्भिन्तरओ सचित्तकम्मे [जाव] सोहं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा। एवं जम्मणं, जहा महाबलस्स', [जाय] नामधेज्जं—"जम्हा णं अम्हं इमे वारए कालस्स कुमारस्स पुत्ते पउमावईए देवीए अत्तए, तं होउ गं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेज्ज पउमे पउमे" / सेसं जहा महाबलस्स। अढो दाओ / [जाव] उप्पि पासायवरगए विहरइ / सामो समोसरिए / परिसा निग्गया / कूणिए निग्गए / उमे वि जहा महाबले, निग्गए / तहेव अम्मापिइ-आपुच्छणा, [जाव] पन्वइए अणगारे जाए [जाव] गुत्तबम्भयारी। [2] किसी एक रात्रि में भीतरी भाग में चित्र-विचित्र चित्रामों से चित्रित वासगृह में शैया पर शयन करती हई स्वप्न में सिंह को देखकर वह पद्मावती देवी जागत हई। फिर पुत्र का जन्म हुआ, महाबल की तरह उसका जन्मोत्सव मनाया गया, यावत् नामकरण किया-क्योंकि हमारा यह बालक काल कुमार का पुत्र और पद्मावती देवी का प्रात्मज है, अतएव हमारे इस बालक का नाम पद्म हो।' शेष समस्त वर्णन महाबल के समान समझना चाहिए, अर्थात् राजसी ठाठ से उसका पालन-पोषण हुमा / यथासमय उसने बहत्तर कलाएँ सीखीं। तरुणावस्था आने पर आठ कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ / पाठ-पाठ वस्तुएँ दाय (दहेज) में दी गईं यावत् मार ऊपरी श्रेष्ठ प्रासाद में रहकर भोग भोगते, विचरने लगा। भगवान महावीर स्वामी समवसृत हुए। परिषद् धर्म-देशना श्रवण करने निकली। कूणिक भी बंदनार्थ निकला। महाबल के समान पद्म भी दर्शन-वंदना करने के लिए निकला / महाबल के ही समान माता-पिता से अनुमति प्राप्त करके प्रवजित हुआ, यावत् गुप्त ब्रह्मचारी अनगार हो गया। पद्म अनगार की साधना 3. तए णं से पउमे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अन्तिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अङ्गाइं अहिज्जइ, २त्ता बहूहिं चउत्थछट्टमं [जाव] विहरइ। तए णं से पउमे अणगारे तेणं ओरालेणं, जहा मेहो, तहेव धम्मजागरिया, चिन्ता / एवं जहेय मेहो तहेव समणं भगवं आपुच्छिता विउले [जाव] पाओवगए समाणे तहालवाणं थेराणं अन्तिए 1. महाबल के जन्मादि का वर्णन परिशिष्ट में देखिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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