________________ 38] [निरयावलिकासूत्र तए णं ते दोण्ह वि रायाणं अणीया नियगसामीसासणाणुरत्ता महया जणक्खयं जणवहं जणप्पमई जणसंवट्टकप्पं नच्चन्तकबन्धवार भीमं रुहिरकद्दमं करेमाणा अन्नमन्नेणं सद्धि जुज्झन्ति / / ___तए णं से काले कुमार तिहिं दन्तिसहस्सेहि जाव मणूसकोडीहि गरुलवूहेणं एक्कारसमेणं खंधेणं रहमुसलं संगाम संगामेमाणे हयमहिय० जहा भगवया कालोए देवीए परिकहियं [जाव] जीवियाओ ववरोविए। ___ "तं एवं खलु, गोयमा, काले कुमारे एरिसएहि आरम्भ॑हि जाब एरिसएणं असुभकडकम्मपन्भारेणं काले मासे कालं किच्चा चउत्थोए पङ्कप्पभाए पुढवीए हेमाभे नरए नेरइयत्ताए उववन्ने"। [33] तदनन्तर दोनों राजाओं ने रणभूमि को सज्जित किया, सज्जित करके रणभूमि में अपनी-अपनी जय-विजय के लिए अर्चना की / इसके बाद कणिक राजा ने तेतीस हजार हाथियों यावत् तीस कोटि पैदल सैनिकों से गरुडव्यूह की रचना की। रचना करके गरुड व्यूह द्वारा रथ-मूसल संग्राम प्रारम्भ किया। इधर चेटक राजा ने सत्तावन हजार हाथियों यावत् सत्तावन कोटि पदातियों द्वारा शकटव्यूह की रचना की और रचना करके शकटव्यूह द्वारा रथ-मूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ। तब दोनों राजाओं की सेनाएं युद्ध के लिए तत्पर हो यावत् प्रायुधों और प्रहरणों को लेकर हाथों में ढालों को बांधकर, तलवारें म्यान से बाहर निकालकर, कंधों पर लटके तूणीरों से, प्रत्यंचायुक्त धनुषों से छोड़े हुए बाणों से, फटकारते हुए बायें हाथों से, जोर-जोर से बजती हुई जंघाओं में बंधी हुई घंटिकाओं से, बजती हुई तुरहियों से एवं प्रचंड हुंकारों के महान् कोलाहल से समुद्रगर्जना जैसी करते हुए सर्व ऋद्धि यावत् वाद्यघोषों से, परस्पर अश्वारोही अश्वारोहियों से, गजारूढ गजारूढों से, रथी रथारोहियों से और पदाति पदातियों से भिड़ गए। दोनों राजाओं की सेनाएं अपने-अपने स्वामी के शासनानुराग से आपूरित थीं। अतएत्र महान् जनसंहार, जनवध, जनमर्दन, जनभय और नाचते हुए रुड-मुडों से भयंकर रुधिर का कीचड़ करती हुई एक दूसरे से युद्ध में जूझने लगीं। तदनन्तर काल कुमार तीन हजार हाथियों यावत् तीन मनुष्यकोटियों से गरूडव्यूह के ग्यारहवें भाग में कूणिक राजा के साथ रथमूसल संग्राम करता हुमा हत और मथित हो गया, इत्यादि जैसा भगवान् ने काली देवी से कहा था, तदनुसार यावत् मृत्यु को प्राप्त हो गया। (श्री भगवान ने कहा)-अतएव गौतम ! इस प्रकार के प्रारंभों से, इस प्रकार के कृत अशुभ कार्यों के कारण वह कालकुमार मरण के अवसर पर मरण करके चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के हेमाभ नरक में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ है। उपसंहार 34. 'काले णं भंते ! कुमारे चउत्थीए पुढवीए....."अणन्तरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ?', Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org