________________ 32] [निरयावलिकासूत्र को सेचनक गधहस्ती एवं अठारह लड़ो का हार प्रत्यर्पित करो और बेहल्ल कुमार को भेजो अथवा युद्ध के लिए सज्जित-तैयार होपो / कूणिक राजा बल, वाहन और सैन्य के साथ युद्धसज्जित होकर शी - ही पा रहे हैं। तब दूत ने पूर्वोक्त प्रकार से हाथ जोडकर कणिक का आदेश स्वीकार किया। वह वैशाली / जहाँ चेटक राजा था वहीं पाया। प्राकर उसने दोनों हाथ जोड़कर यावत बधाई देकर इस प्रकार कहा-स्वामिन् ! यह तो मेरी विनयप्रतिपति--शिष्टाचार है। किन्तु कणिक राजा की आज्ञा यह है कि बाये पैर से चेटक राजा की पादपीठ को ठोकर मारो, ठोकर मारकर क्रोधित होकर भाले की नोक से यह पत्र दो, इत्यादि सेना सहित शीघ्र ही यहाँ पा रहे हैं।' तब चेटक राजा ने उस दूत से यह धमकी सुनकर और अवधारित कर क्रोधाभिभूत यावत् ललाट सिकोडकर इस प्रकार उत्तर दिया---'कणिक राजा को सेचनक गधहस्ती छ का हार नहीं लौटाऊंगा और न वेहल्ल कुमार को भेजूगा किन्तु युद्ध के लिए तैयार हूँ।' ऐसा कह कर उस दूत का असत्कार-प्रसन्मान-अपमान कर उसे पिछले द्वार से निकाल दिया। युद्ध की तैयारी 28. तए ण से कूणिए राया तस्स दूयस्स अन्तिए एयम→ सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते कालाईए दस कुमारे सद्दावेइ, 2 ता एवं धयासी-“एवं खल, देवाणुपिया, वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिएण सेयणगं गंवहत्थि अट्ठारसवंक हारं अन्तेउरं सभण्डं च गहाय चम्पाओ निक्खमइ, 2 ता वेसालि अज्जगं जिाव] उवसंपज्जित्ताणं विहरइ / तए णं मए सेयणगस्स गंधहस्थिस्स अट्ठारसवंकस्स अट्ठाए दूया पेसिया / ते य चेडएण रन्ना इमेणं कारणणं पडिसेहिया अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए असंमाणिए प्रवद्दारेणं निच्छुहावेइ / तं सेयं खलु देवाणुपिया, अम्हें चेडगस्स रन्नो जुत्तं गिण्हित्तए"। तए णं कालाईया दस कुमारा कूणियस्स रन्नो एयमझें विणएणं पडिसुणेन्ति / / 28] तत्पश्चात् कणिक राजा ने दूत से इस समाचार को सुनकर और उस पर विचार पर क्रोधित हो काल आदि दस कुमारों को बुलाया और बुलाकर उनसे इस प्रकार कहा'देवानुप्रियो ! बात यह है कि मुझे बिना बताये ही वेहल्लकुमार सेचनक गधहस्ती, अठारह लडों का हार और अन्तःपुर-परिवार सहित गृहस्थी के उपकरणों को लेकर चम्पा से भाग निकला / निकल कर वैशाली में प्रार्य चेटक का प्राश्रय लेकर रह रहा है / मैंने सेचनक गधहस्ती और अठारह लडों का हार लाने के लिए दूत भेजा। चेटक राजा ने इस (पूर्वोक्त) कारण से हाथी, हार और वेहल्ल कुमार को भेजने से इकार कर दिया और मेरे तीसरे दूत को असत्कारित, अपमानित कर पिछले द्वार से निष्कासित कर दिया / इसलिए हे देवानुप्रियो ! हमें चेटक राजा का निग्रह करना चाहिए, उसे दण्डित करना चाहिए। ___उन काल प्रादि दस कुमारों ने कूणिक राजा के इस विचार को विनयपूर्वक स्वीकार किया। काल आदि दस कुमारों को युद्धार्थ सज्जा 29. तए णं से कूणिए राया कालाईए दस कुमारे एवं वयासी-"गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया, सएसु सएसु रज्जेसु; पत्तेयं पत्तेयं व्हाया [जाव] पायच्छित्ता हस्थिखंधवरगया पत्तेयं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org