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________________ वर्ग 1: प्रथम अध्ययन] [23 [20] तदनन्तर किसी दिन कुणिक राजा स्नान करके, बलिकर्म करके विघ्नविनाशक उपाय कर, मंगल एवं प्रायश्चित्त कर और फिर अवसर के अनुकूल शुद्ध मांगलिक वस्त्रों को पहनकर, सर्व अलंकारों से अलंकृत होकर चेलना देवी के चरणवंदनार्थ पहुँचा / उस समय कणिक राजा ने चेलना देवी को उदासीन यावत् चिन्ताग्रस्त देखा / देखकर चेलना देवी के पाँव पकड़ लिए और चेलना देवी से इस प्रकार पूछा–माता ! ऐसी क्या बात है कि तुम्हारे चित्त में संतोष, उत्साह, हर्ष और प्रानन्द नहीं है कि मैं स्वयं राज्यश्री का उपभोग करते हए यावत समय बिता रहा हूँ ? अर्थात मेरा राजा होना क्या आपको अच्छा नहीं लग रहा है ? तब चेलना देवी ने कूणिक राजा से इस प्रकार कहा-हे पुत्र ! मुझे तुष्टि, उत्साह, हर्ष अथवा आनन्द कैसे हो सकता है, जबकि तुमने देवता स्वरूप, गुरुजन जैसे, अत्यन्त स्नेहानुराग युक्त पिता श्रेणिक राजा को बन्धन में डालकर अपना निज का महान् राज्याभिषेक से अभिषेक कराया। तब कणिक राजा ने चेलना देवी से इस प्रकार कहा-माताजी ! श्रेणिक राजा तो मेरा घात करने के इच्छुक थे। हे अम्मा ! श्रेणिक राजा तो मुझे मार डालना चाहते थे, बांधना चाहते थे और निर्वासित कर देना चाहते थे / तो फिर हे माता ! कैसे मान लिया जाए यह कि श्रेणिक राजा मेरे प्रति अतीव स्नेहानुराग वाले थे ? यह सुनकर चेलना देवी ने कणिक कुमार से इस प्रकार कहा-हे पुत्र ! जब तुम्हें मेरे गर्भ में आने पर तीन मास पूरे हए तो मुझे इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुमा कि-- माताएँ धन्य हैं, यावत् अंगपरिचारिकाओं से मैंने तुम्हें उकरड़े में फिकवा दिया, आदि-आदि, यावत् जब भी तुम वेदना से पीड़ित होते और जोर-जोर से रोते तब श्रेणिक राजा तुम्हारी अंगली मुख में लेते और मवाद चूसते / तब तुम चुप-शांत हो जाते, इत्यादि सब वृत्तान्त चेलता ने कूणिक को सुनाया। फिर कहा-इसी कारण हे पुत्र ! मैंने कहा कि श्रेणिक राजा तुम्हारे प्रति अत्यन्त स्नेहानुराग से युक्त हैं।' कणिक राजा ने चेलना रानी से इस पूर्ववृत्तान्त को सुनकर और ध्यान में लेकर चेलना देवी से इस प्रकार कहा-माता! मैंने बरा किया जो देवतास्वरूप, गुरुजन जैसे अत्यन्त स्नेहानुराग से अनुरक्त अपने पिता श्रेणिक राजा को बेड़ियों से बाँधा / अब मैं जाता हूँ और स्वयं ही श्रेणिक राजा की बेड़ियों को काटता हूँ, ऐसा कहकर कुल्हाड़ी हाथ में ले जहाँ कारागृह था, उस ओर चलने के लिए उद्यत हुआ, चल दिया। श्रेणिक का मनोविचार 21. तए णं सेणिए राया कूणियं कुमारं परसुहत्थगयं एज्जमाणं पासइ, 2 ता एवं वयासी"एस गं कूणिए कुमारे अपस्थियपस्थिए [जाव] दुरन्तपंतलक्खणे होणपुण्णचाउद्दसिए हिरिसिरिपरिवज्जिए परसुहत्थगए इह हवमागच्छद / तं न नज्जइ णं ममं केणइ कु-मारेणं मारिस्सइ" ति कट्ट भीए [जाव] तत्थे तसिए उनिग्गे संजायभये तालपुडगं विसं आसगंसि पविखवइ / ___ तए णं से सेणिए राया तालपुडगविसंसि आसगंसि पविखत्ते समाणे मुहत्तन्तरेण परिणममाणंसि निप्पाणे निच्चे? जीवविप्पजढे ओइण्णे। तए णं से कुणिए कुमारे जेणेव चारगसाला तेणेव उवागए, 2 ता सेणियं रायं निप्पाणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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