________________ 12] [निरयावलिकासूत्र होत्था, सोमाले० [जाव] सुरुवे, सामदामभेयदण्ड० जहा चित्तो, [जाव] रज्जधुराए चिन्तए यावि होत्था / तस्स णं सेणियस्स रन्नो चेल्लणा नाम देवी होत्था, सोमाला [जाव] विहरइ // तए णं सा चेल्लणा देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसयंसि वासघरंसि जाव सोहं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, जहा पभावई, [जाव] सुमिणपाढगा पडिविसज्जिया, [जाव] चेल्लणा से वयणं पडिच्छिता जेणेव सए भवणे तेणेव अणुपविट्ठा / 11. भगवान् गौतम, श्रमण भगवान महावीर के समीप पाए और 'भदन्त !' इस प्रकार करते हुए उन्होंने यावत् वंदन नमस्कार किया / वंदन नमस्कार करके अपनी जिज्ञासा व्यक्त करते हुए इस प्रकार निवेदन किया-भगवन् ! तीन हजार हाथियों आदि के साथ जो काल कुमार रथमूसल संग्राम करते हुए चेटक राजा के एक ही प्राधात-प्रहार से रक्तरंजित हो, जीवनरहित-निष्प्राण होकर मरण के अवसर पर मृत्यु को प्राप्त करके कहाँ गया है ? कहाँ उत्पन्न हुप्रा है ? 'गौतम !' इस प्रकार से संबोधित कर भगवान् ने गौतम स्वामी से कहा-'गौतम ! तीन हजार हाथियों आदि के साथ युद्धप्रवृत्त वह काल कुमार जीवनरहित होकर कालमास में काल करके चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के हेमाभ नरक में दस सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में नारक रूप में उत्पन्न हुआ है। ____ गौतम ने पुनः पूछा--भदन्त ! किस प्रकार के भोगों संभोगों, भोग-संभोगों को भोगने से, कैसे-कैसे प्रारम्भों और प्रारम्भ-समारंभों से तथा कैसे आचारित अशुभ कर्मों के भार से मरणसमय में मरण करके वह काल कुमार चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में यावत् नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ है ? गौतम स्वामी के उक्त प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने बताया--गौतम ! उसका कारण इस प्रकार है - उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। वह नगर वैभव से सम्पन्न, शत्रुओं के भय से रहित और धन-धान्यादि की समृद्धि से युक्त था। उस राजगृह नगर में हिमवान् शैल के सदृश महान श्रेणिक राजा राज्य करता था। श्रेणिक राजा की अंग-प्रत्यंगों से सूकमाल नन्दा नाम की रानी थी, जो मानवीय कामभोगों को भोगती हुई यावत् समय व्यतीत करती थी / उस श्रेणिक राजा का पुत्र और नन्दा रानी का पात्मज अभय नामक राजकुमार था, जो सुकमाल यावत् सुरूप था तथा साम, दाम, भेद और दण्ड की राजनीति में चित्तं सारथि के समान' निष्णात था यावत राज्यधुरा-शासन का चिन्तक था-चतुर संचालक था। उस श्रेणिक राजा की चेलना नामकी एक दूसरी रानी थी। वह सुकुमाल हाथ-पैर वाली थी इत्यादि उसका वर्णन समझ लेना चाहिए, यावत् सुखपूर्वक विचरण करती थी। किसी समय शयनगह में चिन्ताओं आदि से मुक्त सुख-शय्या पर सोते हुए वह चेलन. देवी प्रभावती देवी के समान स्वप्न में सिंह को देखकर जागृत हुई, यावत् स्वप्न-पाठकों को आमंत्रित 1 चित्त सारथि का परिचय देखिए राजप्रश्नीय पृ. 131 (आ. प्र. समिति, ब्यावर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org