SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 134] [दृढप्रतिज्ञ : सम्बद्ध अंश दारक भी कामों में उत्पन्न हुअा, भोगों के बीच लालन-पालन किए जाने पर भी उन कामभोगों में एवं मित्रों, ज्ञातिजनों, निजी स्वजन-सम्बन्धियों, परिजनों में अनुरक्त नहीं होगा और तथारूप स्थविरों से केवलबोधि-सम्यग्ज्ञान का लाभ प्राप्त करेगा एवं मुडित होकर, गृहत्याग कर अनगार-प्रव्रज्या अंगीकार कर ईर्यासमिति प्रादि अनगार धर्म का पालन करते हुए सुहुत (अच्छी तरह से होम को गई) हुताशन (अग्नि) की तरह अपने तपस्तेज से चमकेगा, दीप्तिमान् होगा। 8. तस्स णं भगवनो अणुत्तरेणं नाणेणं एवं दंसणेणं चरित्तेणं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं खन्तीए गुत्तीए मुत्तीए अणुत्तरेणं सव्वसंजमतवसुचरियफलनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अणन्ते अणुत्तरे कसिणे पडिपुण्णे निरावरणे निवाघाए केवलवरनाणदसणे समुपज्जिहिइ / [8] इसके साथ ही अनुत्तर (सर्वोत्तम) ज्ञान, दर्शन, चारित्र अप्रतिबद्ध विहार, प्रार्जव, मार्दव, लाघव, क्षमा, गुप्ति, मुक्ति (निर्लोभता), सर्व संयम एवं निर्वाण की प्राप्ति जिसका फल है, ऐसे तपोमार्ग से आत्मा को भावित करते हुए, (उन भगवान् दृढ़प्रतिज्ञ को) अनन्त, अनुत्तर सकल, परिपूर्ण, निरावरण, निर्याघात, अप्रतिहत, सर्वोत्कृष्ट केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त होगा। ____6. तए णं से भगवं अरहा जिणे केवली भविस्सइ, सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स परियागं जाणिहिइ / तं जहा-आगइं गई ठिई चवणं उववायं तक्कं कडं मणोमाणसियं खइयं भत्तं पडिसेवियं आवोकम्मं रहोकम्म-अरहा अरहस्सभागो, तं तं मणवयजोमे वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सम्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ / [] तब वे दृढ़प्रतिज्ञ भगवान् अर्हत जिन केवली हो जाएंगे। जिसमें देव, मनुष्य तथा असुर आदि रहते हैं, ऐसे लोक की समस्त पर्यायों को वे जानेंगे / वे प्रणिमात्र की प्रागति–एक गति से दूसरी गति में प्रागमन को, गति–वर्तमान गति को छोड़कर अन्य गति में गमन को, स्थिति, च्यवन, उपपात (देव या नारक जीवों की उत्पत्ति-जन्म) तर्क (विचार), क्रिया, मनोभावों, क्षय प्राप्त (भोगे जा चुके) प्रतिसेवित (भुज्यमान भोगोपभोग की वस्तुओं), अाविष्कर्म (प्रकट कार्यों), रहः कर्म (एकान्त में किए गुप्त कार्यों) प्रकट और गुप्त रूप से होने वाले उस-उस मन, वचन और काय योग में विद्यमान लोकवर्ती सभी जीवों के सर्वभावों को जानते-देखते हुए विचरण करेंगे / 10. तए णं दढपइन्ने केवली एयारवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूई वासाई केवलिपरियागं पाउणित्ता अप्पणो माउसेसं आभोएत्ता बहूई भत्ताई पच्चक्खाइस्सइ / पच्चक्खाइत्ता बहूई मत्ताई अणसणाए छइस्सइ / छेइत्ता जस्सट्टाए कोरइ नग्गभावे मुण्डमावे केसलोए बम्भचेरवासे अण्हाणगं अदन्तवणं अणुवहाणगं भूमिसेज्जाओ फलहसेज्जानो परधरपवेसो लद्धावलद्धाई माणावमाणाई परेसि होलणाओ खिसणाश्रो गरहणा उच्चावया विरूवा बावीसं परीसहोवसग्गा गामकण्टगा अहियासिज्जन्ति तमढें आराहेइ / आराहित्ता चरिमेहि उस्सासनिझासेहि सिमिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ परिनियाहिइ सव्वदुक्खाणमन्तं करेहिइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy