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________________ परिशिष्ट 1 महाबलचरितम 1. तेणं कालेणं तेणं समएणं हस्थिणापुरे नाम नगरे होत्था, वण्णओ। सहसम्बवणे उज्जाणे, वण्णाम्रो / तत्थ णं हस्थिणापुरे नगरे बले नाम राया होत्था, वण्णओ। तस्स णं बलस्स रन्नो पभावई नामं देवी होत्था, सुकुमाल० वण्णो जाव विहरइ। [1] उस काल और उस समय में हस्तिनापुर नामक नगर था। औपपातिक सूत्र में वणित चंपानगरी के समान उसका वर्णन जानना चाहिए। नगर के ईशान कोण में सहस्राम्रवन नाम का उद्यान था। उसका वर्णन भी औपपातिक सूत्र के उद्यानवर्णन के समान जान लेना चाहिए। उस हस्तिनापुर नगर में बल नाम का राजा था। वह हिमवन आदि पर्वतों के समान महान् था, इत्यादि वर्णन औषपातिक सूत्र के राजवर्णन के समान समझ लेना चाहिए। उस बल राजा की प्रभावती नाम की देवी-रानी थी। उसकी शारीरिक शोभा आदि का वर्णन औषपातिक सूत्रगत राज्ञीवर्णन के अनुरूप जानना चाहिए यावत् बल राजा के साथ विपुल भोगोपभोगों का अनुभव करती हुई समय व्यतीत करती थी। 2. तए णं सा पभावई देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अभिन्तरओ सचित्तकम्मे बाहिरओ दूमियघटुमठे विचित्तउल्लोगचिल्लियतले मणिरयणपणासियन्धयारे बहुसमसुविभत्तदेसमाए पञ्चवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुजोवयारकलिए कालागरुपवरकुंदुरुक्क-तुरुक्कधूवमघमघेन्तगन्धुद्ध याभिरामे सुगन्धवरगन्धिए गन्धवट्टिभूए तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सालिंगणवट्टिए उमनो विबोयणे दुहओ उनए मज्झे नय-गम्भीरे गङ्गापुलिणवालयउद्दालसालिसए उचियखोमियदुगुल्लपट्टपडिच्छायणे सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे आइणगल्यबूरनवणीयतूलफासे सुगन्धवरकुसुमचुण्णसयणोवयारकलिए प्रद्धरत्तकालसमयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी पोहोरमाणी अयमेयारूवं ओरालं कल्लाणं सिवं धन्नं मंगल्लं सस्सिरियं महासुविणं पासित्ताणं पडिबुद्धा। [2] उस प्रभावती देवी ने किसी समय उत्तम और सुरुचिपूर्ण चित्रों के पालेखन से युक्त भीतरी ' भाग वाले और बाहर से लिपे-पुते, कोमल पाषाण से घिसे जाने से चिकने, उपरिम एवं अधोभाग वाले विविध प्रकार के दीप्यमान चित्रामों से सुशोभित, मणि एवं रत्नों के प्रकाश से अंधकार रहित, बहुसम, सुविभक्त कक्ष और प्रकोष्ठों वाले पंच वर्ण के सरस और सुगंधित पुष्पपुजों से उपचरितसजाए हुए, उत्तम कृष्ण अगर, कुन्दरुष्क, तुरुष्क एवं धूप की सुगंध से महकते, सुरभित पदार्थों से सुवासित एवं सुगंध-गुटिका के समान अनुपम वासगृह (भवन) में स्थित और शरीर प्रमाण लंबी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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