________________ 112] [वह्निक्शा इरियासमिए जाव गुत्तबम्भयारी। से गं तत्थ बहूई चउत्थछट्टमवसमदुवालसेहि मासखमासखमणेहि विचित्तेहि तवोकम्मेहि अप्पाणं मावेमाणे बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणिस्सइ, 2 ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसिहिइ, 2 ता सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेइहिइ, जस्सट्टाए कोरइ नग्गमावे मुण्डभावे अण्हाणए जाव अदन्तवणए अच्छत्तए अणोवाहणाए फलहसेज्जा कटुसेज्जा केसलोए * बम्भचेरवासे परघरपवेसे पिण्डवानो लद्धावलद्ध उच्चावया य गामकण्टगा अहियासिज्जइ, तमटुं आराहिइ, 2 ता चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहि सिज्झिहिइ बुझिहिइ जाव सम्वदुक्खाणं अन्तं काहिइ।" निक्खेवओ-एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं वहिवसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमठे पन्नत्ते त्ति बेमि / एवं सेसा वि एक्कारस अज्झयणा नेयव्या संहगणो-अणुसारेण अहोणमइरित्त एक्कारससु वि। ॥पञ्चमो वग्गो समत्तो॥ [20] तदनन्तर वरदत्त अनगार ने पूछा-'भदन्त !' वह निषध देव प्रायुक्षय, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के पश्चात् वहाँ से च्यवन करके कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा? भगवान् ने उत्तर दिया--'पायुष्मन् वरदत्त ! इसी जम्बू द्वीप नामक द्वीप के महाविदेह क्षेत्र के उन्नाक नगर में विशुद्ध पितृवंश वाले राजकुल में पुत्र रूप से उत्पन्न होगा ! तब वह बाल्यावस्था के पश्चात समझदार होकर युवावस्था को प्राप्त करके तथारूप स्थविरों से केवलबोधि-सम्यग्ज्ञान को प्राप्त कर अगार त्याग कर अनगार प्रव्रज्या को अंगीक ज्ञान का प्राप्त कर अगार त्याग कर अनगार प्रव्रज्या को अंगीकार करेगा / वह ईर्यासमिति से सम्पन्न यावत गुप्त ब्रह्मचारी अनगार होगा। और बहत से चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टमभक्त, दसमभक्त, द्वादशभक्त, मासखमण, अर्धमासखमणरूप विचित्र तपसाधना द्वारा आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमणावस्था का पालन करेगा / श्रमण साधना का पालन करके मासिक संलेखना द्वारा आत्मा को शुद्ध करेगा, साठ भोजनों का अनशन द्वारा त्याग करेगा और जिस प्रयोजन के लिए नग्नभाव, मुंडभाव, स्नानत्याग यावत् दांत धोने का त्याग, छत्र का त्याग, उपानह (जूता, पादुका आदि) का त्याग तथा पाट पर सोना, काष्ठ तृण आदि पर सोना-बैठना, केशलोंच, ब्रह्मचर्य ग्रहण करना, भिक्षार्थ पर-गह में प्रवेश करना, यथापर्याप्त भोजन की प्राप्ति होना या न होना, ऊँचे-नीचे अर्थात् तीव्र और सामान्य ग्रामकंटकों (कष्टों) को सहन किया जाता है, उस साध्य पाराधना करेगा और आराधना करके चरम श्वासोच्छ्वास में सिद्ध होगा, बुद्ध होगा, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा। श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा-इस प्रकार हे आयुष्मन् जम्बू ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान् महावीर ने वृष्णिदशा (वह्नदशा) के प्रथम अध्ययन का यह प्राशय प्रतिपादित किया है, ऐसा मैं कहता हूँ।' शेष प्रध्ययन-इसी प्रकार से शेष ग्यारह अध्ययनों का प्राशय भी संग्रहणी-गाथा के अनुसार विना किसी हीनाधिकता के जैसा का तैसा जान लेना चाहिए / // पंचम वर्ग समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org