________________ 10.1 [पुष्पचूलिका विमान की उपपातसभा में देवशय्या पर यावत् अवगाहना से श्रीदेवी के रूप में उत्पन्न हुई, यावत् पांच-पाहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति तथा भाषा-मन:पर्याप्ति से पर्याप्त हुई। इस प्रकार हे गौतम ! श्रीदेवी ने यह दिव्य देवऋद्धि लब्ध और प्राप्त की है / वहाँ उसकी एक पल्योपम की आयु-स्थिति है। 'भदन्त ! यह श्रीदेवी देवभव का प्रायुष्य पूर्ण करके यावत् कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ?' गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा। भगवान् ने उत्तर दिया- 'महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगी और (संयम की आराधना करके सिद्धि प्राप्त करेगी।' निक्षेप 10. निक्खेवओ-तं एवं खलु, जम्बू ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं पुप्फचलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते / तिबेमि / (10) (श्रीसुधर्मा स्वामी ने कहा-) आयुष्मन् जम्बू ! श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त भगवान् महावीर ने पुष्पचूलिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादित किया है / ऐसा मैं कहता हूँ। // प्रथम अध्ययन समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org