________________ वर्ग 3 : चतुर्य अध्ययन] नत्रिका वाली) संसक्तविहारी और स्वच्छन्द (निरंकुश) तथा स्वच्छन्दविहारी हो गई। उसने बहुत वर्षों तक श्रमणी-पर्याय का पालन किया / पालन करके वह अर्धमासिक संलेखना द्वारा आत्मा को परिशोधित कर, अनशन द्वारा तीस भोजनों को छोड़कर और अकरणीय पाप-स्थान--सावद्य कार्यों की आलोचना-प्रतिक्रमण किए बिना ही मरण के समय मरण करके सौधर्मकल्प के विमान की उपपातसभा में देवदूष्य से आच्छादित देवशैया पर अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण अवगाहना से बहुपुत्रिका देवी के रूप में उत्पन्न हुई। तत्पश्चात् उत्पन्न होते ही वह बहुपुत्रिका देवी भाषा-मनःपर्याप्ति आदि पांच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्त अवस्था को प्राप्त होकर देवी रूप में रहने लगी। गौतम ! इस प्रकार बहुपुत्रिका देवी ने वह दिव्य देव-ऋद्धि एवं देवद्युति प्राप्त की है यावत् उसके सन्मुख आई है। गौतम को पुनः जिज्ञासा 45. 'से केण?णं, भन्ते ! एवं वुच्चइ बहुपुत्तिया देवी बहुपुत्तिया देवी ?' 'गोयमा, बहुपुत्तिया णं देवी जाहे जाहे सक्कस्स देविन्वस्स देवरन्नो उत्थाणियणं बरेइ, ताहे ताहे बहवे दारए य वारियाओ य डिम्मए य रिम्भियारो य विउध्वइ, 2 ता सक्के देविन्दे देवराया. तेणेव उवागच्छइ 2 ता सक्कस्स देविन्दस्स देवरन्नो दिव्वं देविष्टि दिव्व देवज्जुइं दिव्वं देवाणभावं उपदंसेइ / से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ बहुपुत्तिया देवो 2' 'बहुपुत्तियाणं भन्ते ! देवीणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता?' 'गोयमा ! चत्तारि पलिओवमाई ठिई पन्नत्ता।' 'बहुपुत्तिया णं भन्ते, देवी ताओ देवलोगाओ पाउखएणं ठिइक्खएणं भवक्खएण' अणन्तरं चयं चहत्ता कहिं गच्छिहिइ कहिं उववज्जिहिइ ?' 'गोयमा ! इहेब जम्बुद्दीवे दोवे भारहे वासे विमगिरिपायमूले विभेलसंनिवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चामाहिइ / ' तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे वीइक्कन्ते जाव बारसेहि दिवसेहि वीइक्कन्तेहि अयमेयारूवं नामधेज्ज करेन्ति-'होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधेज्जं सोमा'। [45] तत्पश्चात् गौतम स्वामी ने पुन: भगवान् से पूछा-'भदन्त ! किस कारण से बहुपुत्रिका देवी को बहुपुत्रिका कहते हैं ?' भगवान ने उत्तर दिया-'गौतम ! जब-जब वह बहुपुत्रिका देवी देवेन्द्र देवराज शक्र के पास जाती तब-तब वह बहुत से बालक-बालिकाओं, बच्चे-बच्चियों की विकुर्वणा करती। विकुर्वणा करके जहाँ देवेन्द्र -देवराज शक्र आसीन होते, वहां जाती। जाकर उन देवेन्द्र देवराज शक्र के समक्ष अपनी दिव्य देवऋदि, दिव्य देवद्युति एवं दिव्य देवानुभाव-प्रभाव को प्रदर्शित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org