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________________ 32] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र पभयालवणाई सालवणाई सरलवणाई सत्तिवण्णवणाई पूअफलिवणाई खज्जरीवणाई णालिएरीवणाई कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूलाई जाव' चिट्ठति / तोसे णं समाए भरहे वासे तत्थ तत्थ बहवे सेरिआगुम्मा गोमालिआगुम्मा कोरंटयगुम्मा बंधुजीवगगुम्मा मणोज्जगुम्मा बीअगुम्मा बाणगुम्मा कणइरगुम्मा कुज्जयगुम्मर सिंदुवारगुम्मा मोग्गरगुम्मा जूहिसागुम्मा मल्लियागुम्मा वासंतिआगुम्मा वत्थुलगुम्मा कत्थुलगुम्मा सेवालगुम्मा अगत्थिगुम्मा मगदंतिआगुम्मा चंपक गुम्मा जाइगुम्मा णवणीइआगुम्मा कुदगुम्मा महाजाइगुम्मा रम्मा महामेहणिकुरंबभूमा दसद्धवणं. कुसुमं कुसुमें ति; जे णं भरहे वासे बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं वायविधुअग्गसाला मुक्कपुष्फपुजोवयारकलिग्रं करेंति / तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ तत्थ तहिं तहिं बहुईओ पउमलयात्रो (णागलयाओ असोअलयानो चंपगलयानो चूयलयानो वणलयानो वासंतियलयानो अइमुत्तयलयाओ कुंदलयाओ) सामलयाओ णिच्चं कुसुमिआओ, (णिच्चं माइयाओ, णिच्चं लवइयानो, णिच्चं थवइयाओ, णिच्चं गुलइयाओ, णिच्चं गोच्छियाप्रो, णिच्चं जमलियाओ, णिच्च जुवलियाओ, णिच्चं विणमियानो, णिच्चं पणमियाओ, णिच्चं कुसुमियमाइयलवइयथवइयगुलइयगोच्छियजमलियजुवलियविणमियपणमिय-सुविभत्तपिंडमंजरिवडिसयधराओ) लयावष्णो / तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ तहि तहिं बहुईओ वणराईओ पण्णत्तानो--किण्हाप्रो, किण्होभासाओ जाव' मणोहरायो, रयमत्तगछप्पयकोरंग-भिंगारग-कोंडलग-जीवंजीवग-नंदीमुहकविल-पिंगलक्खग-कारंडव-चक्कवायग-कलहंस-हंस-सारस-अणेगसउणगण-मिहुणविअरिनाओ, सधुणइयमहुरसरणाइयायो, संपिडिप्रदरियभमरमहुयरिपहकरपरि लिंतमत्तछप्पयकुसुमासवलोलमहुरगुमगुमंतगुजंतदेसभागाओ, अभितरपुष्फ-फलाओ, बाहिरपत्तोच्छण्णाभो, पत्तेहि य पुप्फेहि य अोच्छन्नवलिच्छत्ताओ, साउफलाओ, निरोययानो, अकंटयाओ, णाणाविहगुच्छगुम्ममंडवगसोहियानो, विचित्तसुहकेउभूयाओ, वावी-पुक्खरिणी-दोहियासुनिवेसियरम्मजालहरयाओ, पिडिम-णीहारिमसुगंधिसुहसुरभिमणहरं च महयागंधद्धाणि मुयंताओ, सम्वोउयपुप्फफलसमिद्धाओ, सुरम्मानो पासाईयायो, दरिसणिज्जाओ, अभिरूवानो, पडिरूवानो। [26] जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल के सुषमसुषमा नामक प्रथम बारे में, जब वह अपने उत्कर्ष को पराकाष्ठा में था, भरतक्षेत्र का प्राकार-स्वरूप-अवस्थिति--सब किस प्रकार का था ? गौतम ! उसका भूमिभाग बड़ा समतल तथा रमणीय था। मुरज के ऊपरी भाग की ज्यों वह समतल था। नाना प्रकार की काली, (नीली, लाल, हल्दी के रंग की-पीली तथा) सफेद 1. देखें सूत्र यही 2. देखें सूत्र संख्या 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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