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________________ 30] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र उस्सप्पिणीए एक्कवीसं वाससहस्साई कालो दुस्समदुस्समा 1 एवं पडिलोमं णेयव्वं (एकवीसं वाससहस्साई कालो दुस्समदुस्समा 1, एक्कवीसं वाससहस्साई कालो दुस्समा 2, एगा सागरोक्मकोडाकोडी बायालीसाए वाससहस्सेहि ऊणिओ कालो दुस्समसुसमा 3, दो सागरोबमकोडाकोडीओ कालो सुसमदुस्समा 4, तिणि सागरोवमकोडाकोडीमो कालो सुसमा 5) चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा 6, दससागरोवमकोडाकोडीओ कालो पोसप्पिणी, दससागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी, वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी। [25] भगवन् ! औपमिक काल का क्या स्वरूप है, वह कितने प्रकार का है ? गौतम ! औपमिक काल दो प्रकार का है—पल्योपम तथा सागरोपम / भगवन् ! पल्योपम का क्या स्वरूप है ? गौतम ! पल्योपम की प्ररूपणा करूगा-(इस सन्दर्भ में ज्ञातव्य है-) परमाणु दो प्रकार का है—(१) सूक्ष्म परमाणु तथा (2) व्यावहारिक परमाणु / अनन्त सूक्ष्म परमाणु-पुद्गलों के एकभावापन्न समुदाय से व्यावहारिक परमाणु निष्पन्न होता है / उसे (व्यावहारिक परमाणु को) शस्त्र काट नहीं सकता। कोई भी व्यक्ति उसे तेज शस्त्र द्वारा भी छिन्न-भिन्न नहीं कर सकता। ऐसा सर्वज्ञों ने कहा है / वह (व्यावहारिक परमाणु) सभी प्रमाणों का आदि कारण है / ___ अनन्त व्यावहारिक परमाणुओं के समुदय-संयोग से एक उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका होती है / पाठ उत्श्लक्ष्णश्लक्षिणकाओं की एक श्लक्ष्णश्लक्षिणका होती है। पाठ श्लक्ष्णश्लक्षिणकाओं का एक उर्ध्वरेणु होता है। पाठ ऊर्ध्वरेणुओं का एक त्रसरेणु होता है। आठ त्रसरेणुओं का एक रथरेणु (रथ के चलते समय उड़ने वाले रज-कण) होता है / पाठ रथरेणुओं का देवकुरु तथा उत्तरकुरु निवासी मनुष्यों का एक बालाग्र होता है / इन आठ बालानों का हरिवर्ष तथा रम्यकवर्ष के निवासी मनुष्यों का एक बालाग्र होता है / इन आठ बालानों का हैमवत तथा हैरण्यवत निवासी मनुष्यों का एक बालाग्र होता है / इन आठ बालानों का पूर्वविदेह एवं अपरविदेह के निवासी मनुष्यों का एक बालाग्र होता है / इन आठ बालारों की एक लीख होती है। पाठ लीखों की एक जू होती है। पाठ जूओं का एक यवमध्य होता है / आठ यवमध्यों का एक अंगुल होता है। छः अंगुलों का एक पाद-पादमध्य-तल होता है / बारह अंगुलों की एक बितस्ति होती है। चौवीस अंगुलों की एक रनि-हाथ होता है। अड़तालीस अंगुलों की एक कुक्षि होती है / छियानवे अंगुलों का एक प्रक्ष-पाखा-शकट का भागविशेष होता है / इसी तरह छियानवे अंगुलों का एक दंड, धनुष, जुआ, मूसल तथा नलिका--एक प्रकार की यष्टि होती है। दो हजार धनुषों का एक गव्यूत-कोस होता है। चार गव्यूतों का एक योजन होता है। इस योजन-परिमाण से एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा, एक योजन ऊँचा तथा इससे तीन गुनी परिधि युक्त पल्य-धान्य रखने के कोठे जैसा हो। देवकुरु तथा उत्तरकुरु में एक दिन, दो दिन, तीन दिन, अधिकाधिक सात दिन-रात के जन्मे यौगलिक के प्ररूढ बालानों से उस पल्य को इतने सघन, ठोस, निचित, निविड रूप में भरा जाए कि वे बालाग्र न खराब हों, न विध्वस्त हों, न उन्हें For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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