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________________ 28] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र [24] भगवन ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में कितने प्रकार का काल कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का काल कहा गया है—अवसर्पिणी काल तथा उत्सर्पिणी काल / भगवन् ! अवसर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? गौतम ! अवसर्पिणी काल छह प्रकार का है-जैसे 1. सुषम-सुषमाकाल, 2. सुषमाकाल, 3. सुषम-दुःषमाकाल, 4. दुःषम-सुषमाकाल, 5. दुःषमाकाल, 6. दुःषम-दुःषमाकाल / भगवन् ! उत्सर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का है-जैसे 1. दुःषम-दुःषमाकाल, (2. दुःषमाकाल, 3. दुःषमसुषमाकाल, 4. सुषम-दुःषमाकाल, 5. सुषमाकाल, 6. सुषम-सुषमाकाल)।। भगवन् ! एक मुहूर्त में कितने उच्छ्वास-निःश्वास कहे गए हैं ? गौतम ! असंख्यात समयों के समुदाय रूप सम्मिलित काल को आवलिका कहा गया है। संख्यात पावलिकाओं का एक उच्छ्वास तथा संख्यात पावलिकाओं का एक निःश्वास होता है / हृष्ट-पुष्ट, अग्लान, नीरोग प्राणी का-मनुष्य का एक उच्छ्वास-निःश्वास प्राण कहा जाता है। सात प्राणों का एक स्तोक होता है। सात स्तोकों का एक लव होता है / सत्तहत्त तहत्तर लवों का एक मुहूर्त होता है / यो तीन हजार सात सौ तिहत्तर उच्छ्वास-नि:श्वास का एक मुहूर्त होता है। ऐसा अनन्त ज्ञानियों ने सर्वज्ञों ने बतलाया है। इस मुहूर्तप्रमाण से तीस मुहूत्तों का एक अहोरात्र--दिन-रात, पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष, दो पक्षों का एक मास, दो मासों की एक ऋतु, तीन ऋतुओं का एक अयन, दो अयनों का एक संवत्सरवर्ष, पांच वर्षों का एक युग, बीस युगों का एक वर्ष-शतक-शताब्द या शताब्दी, दश वर्षशतकों का एक वर्ष-सहस्र-एक हजार वर्ष, सौ वर्षसहस्रों का एक लाख वर्ष, चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वांग, चौरासी लाख पूर्वागों का एक पूर्व होता हैं अर्थात्-८४०००००४८४००००० - 70560000000000 वर्षों का एक पूर्व होता है। चौरासी लाख पूर्वो का एक त्रुटितांग, चौरासी लाख त्रुटितांगों का एक त्रुटित, चौरासी लाख त्रुटितों का एक अडडांग, चौरासी लाख अडडांगों का एक अडड, चौरासी लाख अडडों का एक अववांग, चौरासी लाख अववांगों का एक अवव, चौरासी लाख अववों का एक हुहुकांग, चौरासी लाख हुहुकांगों का एक हुहुक, चौरासी लाख हुहुकों का एक उत्पलांग, चौरासी लाख उत्पलांगों का एक उत्पल, चौरासी लाख उत्पलों का एक पद्मांग, चौरासी लाख पद्मांगों का एक पद्म, चौरासी लाख पद्मों का एक नलिनांग, चौरासी लाख नलिनांगों का एक नलिन, चौरासी लाख नलिनों का एक अर्थनिपुरांग, चौरासी लाख अर्थनिपुरांगों का एक अर्थनिपुर, चौरासी लाख अर्थनिपुरों का एक अयुतांग, चौरासी लाख अयुतांगों का एक अयुत, चौरासी लाख अयुतों का एक नयुतांग, चौरासी लाख नयुतांगों का एक नयुत, चौरासी लाख नयुतों का एक प्रयुतांग, चौरासी लाख प्रयुतांगों का एक प्रयुत, चौरासी लाख प्रयुतों का एक चूलिकांग, चौरासी लाख चलिकांगों की एक चलिका, चौरासी लाख चलिकाओं का एक शीर्षप्रहेलिक ग तथा चौरासी लाख शीर्षप्रहेलिकांगों की एक शीर्षप्रहेलिका होती है। यहाँ तक अर्थात् समय से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक काल का गणित है / यहाँ तक ही गणित का विषय है। यहाँ से आगे औपमिक-उपमा-आधृत काल है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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