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________________ 20] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र उस सिद्धायतन की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं। वे द्वार पांच सौ धनुष ऊँचे और ढाई सौ धनुष चौड़े हैं / उनका उतना ही प्रवेश-परिमाण है। उनकी स्तुपिकाएँ श्वेत-उत्तम-स्वर्णनिर्मित हैं। द्वार' अन्यत्र वर्णित हैं। उस सिद्धायतन के अन्तर्गत बहुत समतल, सुन्दर भूमिभाग है, जो मृदंग आदि के ऊपरी भाग के सदृशः समतल है / उस सिद्धायतन के बहुत समतल और सुन्दर भूमिभाग के ठीक बीच में देवच्छन्दक--देवासन-विशेष है। वह पांच सौ धनुष लम्बा, पाँच सौ धनुष चौड़ा और कुछ अधिक पाँच सौ धनुष ऊँचा है, सर्व रत्नमय है। यहाँ जिनोत्सेध परिमाण तीर्थंकरों की दैहिक ऊँचाई जितनी ऊँची एक सौ आठ जिन-प्रतिमाएँ हैं। उन जिन-प्रतिमाओं को हथेलियाँ और पगलियाँ तपनीय-स्वर्ण निर्मित हैं। उनके नख अन्तःखचित लोहिताक्ष-लाल रत्नों से युक्त अंक रत्नों द्वारा बने हैं, उनके चरण, गुल्फ टखने, जंघाएँ, जान-घुटने, उरु तथा उनकी देह-लताएँ कनकमय-स्वर्ण-निर्मित हैं, श्मश्रु रिष्टरत्न निर्मित है, नाभि तपनीयमय है, रोमराजि-केशपंक्ति रिष्ट रत्नमय है, चूचक-स्तन के अग्रभाग एवं श्रीवत्स–वक्षःस्थल पर बने चिह्न-विशेष तपनीयमय हैं, भुजाएँ, ग्रीवाएँ कनकमय हैं, ओष्ठ प्रवाल-मूगे से बने हैं, दाँत स्फटिक निर्मित हैं, जिह्वा और तालु तपनीयमय हैं, नासिका कनकमय है। उनके नेत्र अन्तःखचित लोहिताक्ष रत्नमय अंक-रत्नों से बने हैं, तदनुरूप पलकें हैं, नेत्रों की कनीनिकाएँ, अक्षिपत्र-नेत्रों के पर्दे तथा भौंहें रिष्ट-रत्नमय हैं, कपोल-गाल, श्रवण-कान तथा ललाट कनकमय हैं, शीर्ष-घटी-खोपड़ी वज्ररत्नमय है-हीरकमय है, केशान्त तथा केशभूमि-- मस्तक की चाँद तपनीयमय है, ऊपरी मूर्धा-मस्तक के ऊपरी भाग रिष्ट रत्नमय हैं। जिन-प्रतिमाओं में से प्रत्येक के पीछे दो-दो छत्रधारक प्रतिमाएँ हैं। वे छत्रधारक प्रतिमाएँ हिम-बर्फ, रजत-चाँदी, कुद तथा चन्द्रमा के समान उज्ज्वल, कोरंट पुष्पों की मालाओं से युक्त, सफेद छत्र लिए हुए अानन्दोल्लास की मुद्रा में स्थित हैं। उन जिन-प्रतिमाओं के दोनों तरफ दो-दो ओवरधारक प्रतिमाएँ हैं / वे चँवरधारक प्रतिमाएँ चंद्रकांत, हीरक, वैडूर्य तथा नाना प्रकार की मणियों, स्वर्ण एवं रत्नों से खचित, बहुमूल्य तपनीय सदृश उज्ज्वल, चित्रित दंडों सहित हत्थों से युक्त, देदीप्यमान, शंख, अंक-रत्न, कुन्द, जल-कण, रजत, मथित अमृत के झाग की ज्यों श्वेत, चाँदी जैसे उजले, महीन, लम्बे बालों से युक्त धवल चँवरों को सोल्लास धारण करने की मुद्रा में या भावभंगी में स्थित हैं। उन जिन-प्रतिमाओं के आगे दो-दो नाग-प्रतिमाएँ, दो-दो यक्ष-प्रतिमाएँ, दो-दो भूत-प्रतिमाएँ तथा दो-दो आज्ञाधार-प्रतिमाएँ संस्थित हैं, जो विनयावनत, चरणाभिनत-चरणों में झुकी हुई और हाथ जोड़े हुए हैं। वे सर्व रत्नमय, स्वच्छ, सुकोमल, चिकनी, घुटी हुई-सी-घिसी हुई-सी, तरासी हुई सी, रजरहित, कर्दमरहित तथा सुन्दर हैं / उन जिन-प्रतिमाओं के आगे एक सौ आठ घंटे, एक सौ आठ चन्दन-कलश-मांगल्य-घट, उसी प्रकार एक सौ आठ भूगार-झारियाँ, दर्पण, थाल, पात्रियाँ-छोटे पात्र, सुप्रतिष्ठान, मनोगु ----- -- --- - -- 1. देखें राजप्रश्नीय सूत्र 121-123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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