________________ 14] [जम्बूद्वीपप्रजप्तिसूत्र विद्याधर-नगर वैभवशाली, सुरक्षित एवं समृद्ध हैं। (वहाँ के निवासी तथा अन्य भागों से आये हुए व्यक्ति वहाँ अमोद-प्रमोद के प्रचुर साधन होने से प्रमुदित रहते हैं / लोगों को वहाँ घनी आवादी है / सैंकड़ों, हजारों हलों से जुती उसकी समीपवर्ती भूमि सहजतया सुन्दर मार्ग-सीमा-सी लगती है। वहाँ मुर्गों और युवा सांडों के बहुत समूह हैं / उसके आसपास की भूमि ईख, जौ और धान के पौधों से लहराती है / वहाँ गायों, भैंसों की प्रचुरता है। वहाँ शिल्पकला युक्त चैत्य और युवतियों के विविध सन्निवेशों-पण्य-तरुणियों के पाड़ों--टोलों का बाहुल्य है / वह रिश्वतखोरों, गिरहकटों, बटमारों, चोरों, खण्डरक्षकों-चुंगी वसूल करने वालों से रहित, सुख-शान्तिमय एवं उपद्रवशून्य है / वहाँ भिक्षुकों को भिक्षा सुखपूर्वक प्राप्त होती है, इसलिए वहाँ निवास करने में सब सुख मानते हैं, आश्वस्त हैं। अनेक श्रेणो के कोटुम्बिक-पारिवारिक लोगों को धनो वस्ती होते हुए भी वह शान्तिमय है / नट-नाटक दिखाने वाले, नर्तक-नाचने वाले, जल्ल-कलाबाज-रस्सी आदि पर चढ़कर कला दिखाने वाले, मल्ल-पहलवान, मौष्टिक-मुक्केबाज, विडम्बक-विदूषक-मसखरे, कथक-कथा कहने वाले, प्लवक-उछलने या नदी आदि में तैरने का प्रदर्शन करने वाले, लासकवीररस की गाथाएं या रास गाने वाले, आख्यायक-शुभ-अशुभ बताने वाले, लंख-जाँस के सिरे पर खेल दिखाने वाले, मंख-चित्रपट दिखाकर आजीविका चलाने वाले, तूणइल्ल-तूण नामक तन्तुवाद्य बजाकर आजीविका कमाने वाले. तबवोणिक-ब-वीणा या गो बजाने वाले, तालाचरताली बजाकर मनोविनोद करने वाले प्रादि अनेक जनों से वह सेवित है / पाराम-क्रीडा वाटिका, उद्यान-बगोचे, कुए, तालाब, बावड़ी, जल के छोटे-छोटे बाँध-इनसे युक्त हैं। नन्दनवन सी लगती है / वह ऊँचो, विस्तीर्ण और गहरी खाई से युक्त है, चक्र, गदा, भुसुडि-पत्थर फेंकने का एक विशेष अस्त्र-गोफिया, अवरोध-अन्तर-प्राकार-शत्रु सेना को रोकने के लिए परकोटे जैसा भीतरी सुदृढ़ पावरक साधन, शतघ्नो-महायष्टि या महाशिला, जिसके गिराये जाने पर सैंकड़ों व्यक्ति दब-कुचल कर मर जाएं ओर द्वार के छिद्र-रहित कपाट-युगल के कारण जहाँ प्रवेश कर पाना दुष्कर हो / धनुष जैसे टेढ़े परकोटे से वह घिरी हुई है / उस परकोटे पर गोल आकार के बने हुए कपिशीर्षकों कंगूरों-भीतर से शत्रु-सैन्य को देखने आदि हेतु निर्मित बन्दर के मस्तक के आकार के छेदों-से वह सुशोभित हैं / उसके राजमार्ग, अट्टालक-परकोटे ऊपर निर्मित आश्रय-स्थानोंगुमटियों, चरिका-परकोटे के मध्य बने हुए आठ हाथ चौड़े मार्गों, परकोटे में बने हुए छोटे द्वारों-बारियों, गोपुरों-नगर-द्वारों, तोरणों से सुशोभित और सुविभक्त है। उसकी अर्गला और इन्द्रकील-गोपुर के किवाड़ों के प्रागे जुड़े हुए नुकीले भाले जैसो कोलें, सुयोग्य शिल्पाचार्यों-निपुण शिल्पियों द्वारा निर्मित हैं / विपणि-हाट-मार्ग, वणिक्-क्षेत्र व्यापारक्षेत्र, बाजार आदि के कारण तथा बहुत से शिल्पियों, कारीगरों के प्रावासित होने के कारण वह सुख-सुविधा पूर्ण है / तिकोने स्थानों, तिराहों, चोराहों, चवरों-जहाँ चार से अधिक रास्ते मिलते हों ऐसे स्थानों, बर्तन आदि की दूकानों तथा अनेक प्रकार की वस्तुओं से परिमंडित-सुशोभित और रमणीय है। राजा की सवारो निकलते रहने के कारण उसके राजमार्गों पर भीड़ लगी रहती है। वहाँ अनेक उत्तम घोड़े, मदोन्मत्त हाथो, रथ-समूह, शिविका-पर्देदार पालखियां, स्यन्दमानिका-पुरुष-प्रमाण पालखियां, यान-गाड़ियां तथा यूग्य-पुरातनकालीन गोल्लदेश में सुप्रसिद्ध दो हाथ लम्बे-चौड़े डोली जैसे यान-इनका जमघट लगा रहता है। वहाँ खिले हुए कमलों से शोभित जल-जलाशय हैं / सफेदी किए हुए उत्तम भवनों से वह सुशोभित, अत्यधिक सुन्दरता के कारण निनिमेष नेत्रों से प्रेक्षणीय, चित्त For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org