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________________ 12] [जम्बूदीपप्राप्तिसूत्र वैताढ्य पर्वत रुचक-संस्थान-संस्थित है--उसका आकार रुचक---ग्रीवा के प्राभरण-विशेष जैसा है / वह सर्वथा रजतमय है / वह स्वच्छ, सुकोमल, चिकना, धुटा हुआ-सा-घिसा हुआ-सा, तराशा हुया सा, रज-रहित, मैल-रहित, कर्दम-रहित तथा कंकड़-रहित है। वह प्रभा, कान्ति एवं उद्योत से युक्त है, चित्त को प्रसन्न करने वाला, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप है। वह अपने दोनों पार्श्वभागों में--दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं- मणिमय पद्म-रचित उत्तम वेदिकाओं तथा वन-खंडों से सम्पूर्णतः घिरा है / वे पद्मवरवेदिकाएँ आधा योजन ऊंची तथा पाँच सौ धनुष चौड़ी हैं, पर्वत जितनी ही लम्बी हैं। पूर्वोक्त के अनुसार उनका वर्णन समझ लेना चाहिए। वे वन-खंड कुछ कम दो योजन चौड़े हैं, कृष्ण वर्ण तथा कृष्ण आभा से युक्त हैं / इनका वर्णन पूर्ववत् जान लेना चाहिए। 13. वेयड्डस्स णं पच्चयस्स पुरस्थिमपच्चत्थिमेणं दो गुहाम्रो पण्णत्तानो–उत्तरदाहिणाययाओ, पाईणपडोणवित्थिग्णाओ, पण्णासं जोषणाई आयामेणं, दुवालस जोअणाई विक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, वइरामयकवाडोहाडियारो, जमलजुअलकवाडघणदुप्पवेसाओ, णिच्चंधयारतिमिस्साओ, ववगयगहचंदसूरणवखत्तजोइसपहाओ जाव' पडिरूवानो, तं जहा-तमिसगुहा चेव खंडप्पवायगुहा चेव / तत्थ णं दो देवा महिड्डीया, महज्जुईआ, महाबला, महायसा, महासोवला, महाणुभागा, पलिओवमट्टिईया परिवसंति, तं जहा कयमालए चेव गट्टमालए चेव / तेसि णं वणसंडाणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाश्रो। वेअदृस्स पव्वयस्स उभओ पासि दस दस जोप्रणाइं उड्ढं उप्पइत्ता एत्थ णं दुवे विज्जाहरसेढीनो पण्णत्तानो-पाईणपडीणाययाप्रो, उदीणदाहिणवित्थिण्णाओ, दस दस जोप्रणाई विक्खंभेणं, पव्वयसमियाप्रो आयामेणं, उभओ पासि दोहि पउमवरवेइयाहि, दोहि वणसं.हि संपरिक्खिताप्रो, तानो गं पउमवरवेइयाओ अद्धजोअणं उड्ढे उच्चत्तेणं, पञ्च धणुसयाई विक्खंभेणं, पन्वयसमियाओ प्रआयामेणं, वणनो यन्वो, वणसंडावि पउमवरवेइयासमगा पायामेणं, वग्णओ। 13] वैताढ्य पर्वत के पूर्व-पश्चिम में दो गुफाएं कही गई हैं। वे उत्तर-दक्षिण लम्बी हैं तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ी हैं। उनकी लम्बाई पचास योजन, चौड़ाई बारह योजन तथा ऊंचाई पाठ योजन है / उनके वज्ररत्नमय हारकमय कपाट है, दो-दो भागों के रूप में निमित, समस्थित कपाट इतने सघन-निश्छिद्र या निविड हैं, जिससे गुफाओं में प्रवेश करना दुःशक्य है। उन दोनों गुफाओं में सदा अँधेरा रहता है। वे ग्रह, चन्द्र, सूर्य तथा नक्षत्रों के प्रकाश से रहित हैं, अभिरूप एवं प्रतिरूप हैं / उन गुफाओं के नाम तमिस्रगुफा तथा खंडप्रपातगुफा हैं। वहाँ कृतमालक तथा नृत्यमालक-दो देव निवास करते हैं / वे महान ऐश्वर्यशाली, धतिमान, बलवान्, यशस्वी, सुखी तथा भाग्यशाली हैं। पल्योपमस्थितिक हैं-एक पल्योपम की स्थिति या आयुष्य वाले हैं। उन वनखंडों के भूमिभाग बहुत समतल और सुन्दर हैं / वैताढ्य पर्वत के दोनों पार्श्व में--- दोनों ओर दश-दश योजन की ऊंचाई पर दो विद्याधर श्रेणियाँ-पावास-पंक्तियाँ हैं / वे पूर्व-पश्चिम 1. देखें सूत्र संख्या 4 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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