________________ तो उसे कठोर दण्ड दिया जायेगा। वहां से सभी इन्द्र नन्दीश्वर द्वीप जाकर अष्टाह्निका महोत्सव मनाते हैं और तीर्थंकर के माता-पिता भी जन्मोत्सव मनाते हैं। बौद्ध साहित्य में तीर्थंकर के जन्मोत्सव का वर्णन जैसा जैन प्रागमसाहित्य में प्राया है, उससे कतिपय अंशों में मिलताजुलता बौद्ध परम्परा में भी तथागत बुद्ध के जन्मोत्सव का वर्णन मिलता है।' छठा बक्षस्कार ___ छठे वक्षस्कार में जम्बूद्वीपगत पदार्थ संग्रह का वर्णन है। जम्बूद्वीप के प्रदेशों का लवणसमुद्र से स्पर्श और जीवों का जन्म, जम्बूद्वीप में भरत, ऐरवत, हैमबत, हैरण्यवत, हरिवास, रम्यकवास और महाविदेह इनका प्रमाण, वर्षधर पर्वत, चित्रकूट, विचित्रकूट, यमक पर्वत, कंचन पर्वत, वक्षस्कार पर्वत, दीर्घ वैताढ्य पर्वत, वर्षधरकूट, वक्षस्कारकूट, वैताढ्यकट, मन्दरकूट, मागध तीर्थ, वरदाम तीर्थ, प्रभास तीर्थ, विद्याधर श्रेणिया चक्रवर्ती विजय, राजधानियां, तमिस्रगुफा, खंडप्रपातगुफा, नदियों और महानदियों का विस्तार से मूल आगम में वर्णन प्राप्त है। पाठक गण उसका पारायण कर अपने ज्ञान में अभिवृद्धि करें। सातवां वक्षस्कार सातवें वक्षस्कार में ज्योतिष्कों का वर्णन है / जम्बूद्वीप में दो चन्द्र, दो सूर्य, छप्पन नक्षत्र, 176 महाग्रह प्रकाश करते हैं। उसके पश्चात् सूर्य मण्डलों की संख्या आदि का निरूपण है। सूर्य की गति, दिन और रात्रि का मान, सूर्य के प्रातप का क्षेत्र, पृथ्वी, सूर्य प्रादि की दूरी, सूर्य का ऊर्ध्व और तिर्यक नाप, चन्द्रमण्डलों की संख्या, एक मुहूर्त में चन्द्र की गति, नक्षत्र मण्डल एवं सूर्य के उदय-अस्त विषयों पर प्रकाश डाला गया है। संवत्सर पांच प्रकार के हैं-नक्षत्र, युग, प्रमाण, लक्षण और शनैश्चर / नक्षत्र संवत्सर के बारह भेद बताये हैं / युगसंवत्सर, प्रमाणसंवत्सर और लक्षणसंवत्सर के पांच-पांच भेद हैं। शनैश्चर संवत्सर के 28 भेद हैं / प्रत्येक संवत्सर के 12 महीने होते हैं। उनके लौकिक और लोकोत्तर नाम बताये हैं। एक महीने के दो पक्ष, एक पक्ष के 15 दिन ब 15 रात्रि और 15 तिथियों के नाम, मास, पक्ष, करण, योग, नक्षत्र, पोरुषीप्रमाण आदि का विस्तार से विवेचन किया गया है। चन्द्र का परिवार, मंडल में गति करने वाले नक्षत्र, पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा में चन्द्रविमान को वहन करने वाले देव, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा के विमानों को वहन करने वाले देव, ज्योतिष्क देवों की शीघ्र गति, उनमें अल्प और महाऋद्धि वाले देव, जम्बूद्वीप में एक तारे से दूसरे तारे का अन्तर, चन्द्र की चार अग्रमहिषियाँ, परिवार, वैक्रियशक्ति, स्थिति आदि का वर्णन है। जम्बूद्वीप में जघन्य, उत्कृष्ट तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, निधि, निधियों का परिभोग, पंचेन्द्रिय रत्न तथा उनका परिभोग, एकेन्द्रिय रत्न, जम्बूद्वीप का आयाम, विष्कंभ, परिधि, ऊंचाई, पूर्ण परिमाण, शाश्वत अशाश्वत कथन की अपेक्षा, जम्बूद्वीप में पाँच स्थावर कायो में अनन्त बार उत्पत्ति, जम्बूद्वीप नाम का कारण आदि बताया गया है। व्याख्यासाहित्य __जैन भूगोल तथा प्रागैतिहासिककालीन भारत के अध्ययन की दृष्टि से जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का अनूठा महत्त्व है / जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति पर कोई भी नियुक्ति प्राप्त नहीं है और न भाष्य ही लिखा गया है / किन्तु एक चूणि अवश्य 231. पागम और त्रिपिटक एक अनुशीलन, प्र. भा., मुनि नगराज [50 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org