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________________ 396] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र तेरस अंगुलाई श्रद्ध'गुलं च किंचि विसेसाहिअं परिक्खेवेणं पण्णत्ते। एगं जोअण-सहस्सं उव्वेहेणं, णवणउति जोअण-सहस्साइं साइरेगाई उद्धं उच्चत्तेणं, साइरेगं जोश्रण-सय-सहस्सं सध्वग्गेणं पण्णत्ते / 206] भगवन् ! जम्बूद्वीप की लम्बाई-चौड़ाई, परिधि, भूमिगत गहराई, ऊँचाई तथा भूमिगत गहराई और ऊँचाई-दोनों समग्रतया कितनी बतलाई गई है ? ___ गौतम ! जम्बूद्वीप की लम्बाई-चौड़ाई 1,00,000 योजन तथा परिधि 3,16,227 योजन 3 कोश 128 धनुष कछ अधिक 136 अंगूल बतलाई गई है। इसकी भूमिगत गहराई 1000 योजन, ऊँचाई कुछ अधिक 66,000 योजन तथा भूमिगत गहराई और ऊँचाई दोनों मिलाकर कुछ अधिक 1,00,000 योजन है। जम्बूद्वीप : शाश्वत : अशाश्वत 210. जम्बुद्दीवे णं भन्ते ! दीवे कि सासए असासए ? गोयमा ! सिम सासए, सिम्र प्रसासए। से केणठेणं भन्ते ! एवं वुच्चइ–सिन सासए, सिप असासए ? गोयमा! दबट्टयाए सासए, वष्ण-पज्जवेहि, गंध-पज्जवेहि, रस-पज्जवेहि फास-पज्जवेहि असासए। से तेणठेणं गोयमा! एवं वच्चइ सिअ सासए, सिन असासए / जम्बुद्दीवे णं भन्ते ! दीवे कालो केवचिरं होइ ? गोयमा ! ण कयावि णासि, ण कयावि णस्थि, ण कयावि ण भविस्सइ / भुवि च, भवइ अ, भविस्सइ प्र / धुवे, णिपए, सासए, अन्वए, अवट्टिए, णिच्चे जम्बुद्दीवे दीवे पण्णत्ते। [210] भगवन् ! जम्बूद्वीप शाश्वत है या अशाश्वत है ? गौतम ! स्यात्---कथंचित् शाश्वत है, स्यात्-कथंचित् अशाश्वत है / भगवन् ! वह स्यात् शाश्वत है, स्यात् अशाश्वत है- ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! द्रव्य रूप से-द्रव्याथिक नय की अपेक्षा से वह शाश्वत है, वर्णपर्याय, रसपर्याय एवं स्पर्शपर्याय की दृष्टि से-पर्यायाथिक नय की अपेक्षा से वह अशाश्वत है। गौतम ! इसी कारण कहा जाता है-वह स्यात् शाश्वत है, स्यात् प्रशाश्वत है। भगवन् ! जम्बूद्वीप काल की दृष्टि से कब तक रहता है ? गौतम ! यह कभी-भूतकाल में नहीं था, कभी-वर्तमान काल में नहीं है, कभी-भविष्यकाल में नहीं होगा-ऐसी बात नहीं है / यह भूतकाल में था, वर्तमान काल में है और भविष्यकाल में रहेगा। जम्बूद्वीप ध्र व, नियत, शाश्वत, अव्यय, अवस्थित तथा नित्य कहा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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