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________________ सप्तम वक्षस्कार] करते हुए, दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार अश्वरूपधारी देव विमान के उत्तरी पार्श्व को परिवहन करते हैं। चार-चार हजार सिंहरूपधारी देव, चार-चार हजार गजरूपधारी देव, चार-चार हजार रूपधारा देव तथा चार-चार हजार अश्वरूपधारी देव-कूल सोलह-सोलह हजार देव चन्द्र और सूर्य विमानों का परिवहन करते हैं। ___ ग्रहों के विमानों का दो-दो हजार सिंहरूपधारी देव, दो-दो हजार गजरूपधारी देव, दो-दो हजार वृषभरूपधारी देव और दो-दो हजार अश्वरूपधारी देव-कुल आठ-आठ हजार देव परिवहन करते हैं। नक्षत्रों के विमानों का एक-एक हजार सिंहरूपधारी देव, एक-एक हजार गजरूपधारी देव, एक-एक हजार वृषभरूपधारी देव एवं एक-एक हजार अश्वरूपधारी देव-कुल चार-चार हजार देव परिवहन करते हैं। तारों के विमानों का पांच-पाँच सौ सिंहरूपधारी देव, पाँच-पाँच सौ गजरूपधारी देव, पाँचपाँच सौ वृषभरूपधारी देव तथा पांच-पाँच सौ अश्वरूपधारी देव-कुल दो-दो हजार देव परिवहन करते हैं। __ उपर्युक्त चन्द्र-विमानों के वर्णन के अनुरूप सूर्य-विमान (ग्रह-विमानों, नक्षत्र-विमानों) और तारा-विमानों का वर्णन है / केवल देव-समूह में परिवाहक देवों की संख्या में अंतर है। विवेचन-चन्द्र प्रादि देवों के विमान किसी अवलम्बन के बिना स्वयं गतिशील होते हैं। किसी द्वारा परिवहन कर उन्हें चलाया जाना अपेक्षित नहीं है / देवों द्वारा सिंहरूप, गजरूप, वृषभरूप तथा अश्वरूप में उनका परिवहन किये जाने का जो यहाँ उल्लेख है, उस सन्दर्भ में ज्ञातव्य है-प्राभियोगिक देव तथाविध पाभियोग्य नामकर्म के उदय से अपने समजातीय या हीनजातीय देवों के समक्ष अपना वैशिष्ट्य, सामर्थ्य, अतिशय ख्यापित करने हेतु सिंहरूप में, गजरूप में, वृषभरूप में तथा अश्वरूप में विमानों का परिवहन करते हैं। यों वे चन्द्र, सूर्य आदि विशिष्ट, प्रभावक देवों के विमानों को लिये चलना प्रदर्शित कर अपने अहं की तुष्टि मानते हैं। ज्योतिष्क देवों की गति : ऋद्धि 201. एतेसि णं भन्ते ! चंदिम-सूरि-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं कयरे सबसिग्घगई कयरे सव्वसिग्घतराए चेव ? गोयमा ! चंदेहितो सूरा सम्वसिग्घगई, सूरेहितो गहा सिग्घगई, गहेहितो णक्खत्ता सिग्घगई, . णक्खत्तेहितो ताराख्वा सिग्धगई, सव्वप्पगई चंदा, सव्वसिग्घगई तारारूवा इति / [201] भगवन् ! इन चन्द्रों, सूर्यो, ग्रहों, नक्षत्रों तथा तारों में कौन सर्वशीघ्रगति हैंचन्द्र आदि सर्व ज्योतिष्क देवों की अपेक्षा शीघ्र गतियुक्त हैं ? कौन सर्वशीघ्रतर गतियुक्त हैं ? गौतम ! चन्द्रों की अपेक्षा सूर्य शीघ्रगतियुक्त हैं, सूर्यों की अपेक्षा ग्रह शीघ्रगतियुक्त हैं, ग्रहों की अपेक्षा नक्षत्र शीघ्रगतियुक्त हैं तथा नक्षत्रों की अपेक्षा तारे शीघ्र गतियुक्त हैं। इनमें चन्द्र सबसे अल्प या मन्द गतियुक्त हैं तथा तारे सबसे अधिक शीघ्र गतियुक्त हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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