________________ 382] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र अडयालीसं भाए विच्यिण्णं सूरमंडलं होइ। चउवीसं खलु भाए बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं // 2 // दो कोसे अगहाणं णक्खत्ताणं तु हवह तस्सद्धं / तस्सद्ध ताराणं तस्सद्ध चेव बाहल्लं // 3 // [199] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत अट्ठाईस नक्षत्रों में कौनसा नक्षत्र सर्व मण्डलों के भीतर-भीतर के मण्डल से होता हुआ गति करता है ? कौनसा नक्षत्र समस्त मण्डलों के बाहर होता हुमा गति करता है ? कौनसा नक्षत्र सब मण्डलों के नीचे होता हुआ गति करता है ? कौनसा नक्षत्र सब मण्डलों के ऊपर होता हुआ गति करता है ? गौतम ! अभिजित् नक्षत्र सर्वाभ्यन्तर-मण्डल में से होता हुआ गति करता है। मूल नक्षत्र सब मण्डलों के बाहर होता हुआ गति करता है / भरणी नक्षत्र सब मण्डलों के नीचे होता हुआ गति करता है। स्वाति नक्षत्र सब मण्डलों के ऊपर होता हुआ गति करता है / भगवन् ! चन्द्रविमान का संस्थान -आकार कैसा बतलाया गया है ? गौतम ! चन्द्रविमान ऊपर की ओर मुंह कर रखे हए आधे कपित्थ के फल के आकार का बतलाया गया है। वह संपूर्णतः स्फटिकमय है / अति उन्नत है, इत्यादि / सूर्य आदि सर्व ज्योतिष्क देवों के विमान इसी प्रकार के समझने चाहिए। भगवन् ! चन्द्रविमान कितना लम्बा-चौड़ा तथा ऊँचा बतलाया गया है ? गौतम ! चन्द्रविमान योजन चौड़ा, वृत्ताकार होने से उतना ही लम्बा' तथा 6 योजन ऊँचा है। सूर्यविमान है योजन चौड़ा, उतना ही लम्बा तथा इ योजन ऊँचा है। ग्रहों, नक्षत्रों तथा ताराओं के विमान क्रमशः 2 कोश, 1 कोश तथा. कोश विस्तीर्ण हैं / ग्रह आदि के विमानों की ऊँचाई उनके विस्तार से आधी होती है, तदनुसार ग्रहविमानों की ऊँचाई 2 कोश से आधी 1 कोश, नक्षत्रविमानों की ऊँचाई 1 कोश से आधी 3 कोश तथा ताराविमानों की ऊँचाई : कोश से आधी कोश है / ' विमान-वाहक देव 200. चन्दविमाणे णं भन्ते ! कति देवसाहस्सीनो परिवहति ? __ गोयमा ! सोलस देवसाहस्सीनो परिवहंतित्ति / चन्दविमाणस्स णं पुरस्थिमे णं सेनाणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतल विमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरयणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउद्धवट्टपीवरसुसिलिट्ठविसिद्धतिक्खदाढाविडंबिअमुहाणं रत्तुष्पलपत्तमज्यसूमालतालुजीहाणं महुगुलिपिंगलक्खाणं पोवरवरोरुपडिपुण्णविउलखंधाणं मिउविसयसुहमलक्खणपसत्थवरवण्णकेसरसडोवसोहिसाणं ऊसिनसुनमियसुजायअप्फोडिनलंगूलाणं वइरामयणक्खाणं वइरामयदाढाणं वइरामयदन्ताणं तवणिज्जजीहाणं 1. वृत्ताकार वस्तु का प्रायाम-विस्तार समान होता है। 2. यह उस्कृष्टस्थितिक वर्णन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org