________________ सप्तम वक्षस्कार] [381 [198] भगवन् ! ज्योतिष्क देव मेरु पर्वत से कितने अन्तर पर गति करते हैं ? गौतम ! ज्योतिष्क देव मेरु पर्वत से 1121 योजन की दूरी पर गति करते हैं-गतिशील रहते हैं। भगवन् ज्योतिश्चक्र-तारापटल लोकान्त से लोक के अन्त से, अलोक से पूर्व कितने अन्तर पर स्थिर-स्थित बतलाया गया है ? गौतम ! वहाँ से ज्योतिश्चक्र 1111 योजन के अन्तर पर स्थित बतलाया गया है। भगवन् ! अधस्तन-नीचे का ज्योतिश्चक्र धरणितल से---समतल भूमि से कितनी ऊँचाई पर गति करता है ? गौतम ! अधस्तन ज्योतिश्चक्र धरणितल से 760 योजन की ऊँचाई पर गति करता है। इसी प्रकार सूर्यविमान धरणितल से 800 योजन की ऊँचाई पर, चन्द्रविमान 880 योजन की ऊंचाई पर तथा उपरितन-ऊपर के तारारूप-नक्षत्र-ग्रह-प्रकीर्ण तारे 900 योजन की ऊँचाई पर गति करते हैं। भगवन् ! ज्योतिश्चक्र के अधस्तनतल से सूर्यविमान कितने अन्तर पर, कितनी ऊंचाई पर गमन करता है ? गौतम ! वह 10 योजन के अन्तर पर, ऊँचाई पर गति करता है। चन्द्र-विमान 60 योजन के अन्तर पर, ऊँचाई पर गति करता है। उपरितन-ऊपर के तारारूप-प्रकीर्ण तारे 110 योजन के अन्तर पर, ऊँचाई पर गति करते हैं। सूर्य के विमान से चन्द्रमा का विमान 80 योजन के अन्तर पर, ऊँचाई पर गति करता है। उपरितन तारारूप ज्योतिश्चक्र सूर्यविमान से 100 योजन के अन्तर पर, ऊँचाई पर गति करता है। वह चन्द्रविमान से 20 योजन दूरी पर, ऊँचाई पर गति करता है / 166. जम्बद्दीवे णं दीवे अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ते सव्वम्भंरिल्लं चारं चरइ ? कयरे णक्खते सम्वबाहिरं चारं चरइ ? कयरे सव्वहिटिल्लं चारं चरइ, कयरे सव्वउवरिल्लं चारं चरह? गोयमा ! अभिई णक्खत्ते सम्वन्तरं चार चरइ, मूलो सब्वबाहिरं चारं चरइ, भरणी सव्वहि ढिल्लगं, साई सन्चु वरिल्लगं चारं चरइ। चन्द विमाणे णं भन्ते ! किसंठिए पण्णते? गोयमा ! अद्धक विट्ठसंठाणसंठिए, सवफालिग्रामए अन्भुग्गयमूसिए, एवं सव्वाई णेप्रवाई। चन्द विमाणे गं भन्ते ! केवइयं पायाम-विक्खभेणं, केवइयं बाहल्लेणं पण्णते? गोयमा ! छप्पण्णं खलु भाए विच्छिण्णं चन्दमंडलं होइ। अट्ठावीसं भाए बाहल्लं तस्स बोद्धव्यं // 1 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org