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________________ 304] जिम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र लोगमज्भावसाणिनं, अप्पेगइया बत्तीसइविहं विष्वं णट्टविहि उवदंसेन्ति, अप्पेगइना उप्पयनिवयं, निवयउप्पयं, संकुचिअपसारिअं (रिपारिअं), भन्तसंभन्तणामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसन्तीति, अप्पेगइआ तंडवेंति, अप्पेगइमा लासे स्ति। अप्पेगइया पीणेन्ति, एवं बुक्कारेन्ति, अप्फोडेन्ति, वग्गन्ति, सीहणायं णदन्ति, अप्पेगइया सव्वाई करेन्ति, अप्पेगइया हयहेसि एवं हत्थिगुलुगुलाइअं, रहघणघणाइअं, अप्पेगइमा तिण्णिवि, अप्पेगइया उच्छोलन्ति, अप्पेगइमा पच्छोलन्ति, अप्पेगइमा तिवई छिदन्ति, पायदद्दरयं करेन्ति, भूमिचवेडे दलयन्ति, अप्पेगइमा महया सद्देणं राति एवं संजोगा विभासिअम्वा, अप्पेगइया हक्कारेन्ति, एवं पुक्कारेन्ति, थक्कारेन्ति, प्रोवयंति, उप्पयंति, परिवयंति, जलन्ति, तवंति, पयवंति, गज्जति, विज्जुमायंति, वासिति, अप्पेगइमा देवक्कलिमं करेंति एवं देवकहकहगं करेंति, अप्पेगइया बुदुड्डगं करेंति, अप्पेगइमा विकिप्रभूयाई रूवाई विउवित्ता पणच्चंति एवमाइ विभासेज्जा जहा विजयस्स जाव सन्धमो समन्ता प्राहावेंति परिधावेतित्ति / [154] जब अभिषेकयोग्य सब सामग्री उपस्थापित की जा चुकी, तब देवेन्द्र अच्युत अपने दश हजार सामानिक देवों, तेतीस त्रायस्त्रिश देवों, चार लोकपालों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापति-देवों तथा चालीस हजार अंगरक्षक देवों से परिवत होता हुआ स्वाभाविक एवं विकुक्ति उत्तम कमलों पर रखे हुए, सुगन्धित, उत्तम जल से परिपूर्ण, चन्दन से चचित, गलवे में मोली बांधे हुए, कमलों एवं उत्पलों से ढंके हुए, सुकोमल हथेलियों पर उठाये हुए एक हजार आठ सोने के कलशों (एक हजार पाठ चाँदी के कलशों, एक हजार आठ मणियों के कलशों, एक हजार पाठ सोने एवं चांदी के मिश्रित कलशों, एक हजार आठ स्वर्ण तथा मणियों के मिश्रित कलशों, एक हजार पाठ चाँदी और मणियों के मिश्रित कलशों, एक हजार आठ सोने, चाँदी और मणियों के मिश्रित कलशों) एक हजार आठ मृत्तिकामय—मिट्टी के कलशों, (एक हजार आठ चन्दनचचित मंगलकलशों) के सब प्रकार के जलों, सब प्रकार की मृत्तिकाओं, सब प्रकार के कषाय कसैले पदार्थों, (सब प्रकार के पुष्पों, सब प्रकार के सुगन्धित पदार्थों, सब प्रकार की मालाओं,) सब प्रकार की ओषधियों एवं सफेद सरसों द्वारा सब प्रकार की ऋद्धि-वैभव के साथ तुमुल वाद्यध्वनिपूर्वक भगवान् तीर्थकर का अभिषेक करता है। __ अच्युतेन्द्र द्वारा अभिषेक किये जाते समय अत्यन्त हर्षित एवं परितुष्ट अन्य इन्द्र आदि देव छत्र, चंवर, धूपपान, पुष्प, सुगन्धित पदार्थ, (मालाएँ, चूर्ण-सुगन्धित द्रव्यों का बुरादा,) वज्र, त्रिशूल हाथ में लिये, अंजलि बाँधे खड़े रहते हैं। एतत्सम्बद्ध वर्णन जीवाभिगम सूत्र में आये विजयदेव के अभिषेक के प्रकरण के सदृश है / (कतिपय देव पण्डक वन में मंच, अतिमंच-मंचों के ऊपर मंच बनाते हैं,) कतिपय देव पण्डक वन के मार्गों में, जो स्थान, स्थान से पानीत चन्दन आदि वस्तुओं के अपने बीच यत्रतत्र ढेर लगे होने से बाजार की ज्यों प्रतीत होते हैं, जल का छिड़काव करते हैं, उनका सम्मान करते हैं सफाई करते हैं, उन्हें उपलिप्त करते हैं--लीपते हैं, ठीक करते हैं / यों उसे शुचि-पवित्र–उत्तम एवं स्वच्छ बनाते हैं, (काले अगर, उत्तम कुन्दरुक, लोबान तथा धूप की गमगमाती महक से उत्कृष्ट सौरभमय,) सुगन्धित धूममय बनाते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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