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________________ सबसे प्राचीन है / यहाँ के निवासी विनीत स्वभाव के थे। एतदर्थ भगवान ऋषभदेव ने इस नगरी का नाम विनीता रखा / 38 यहाँ और पांच तीर्थंकरों ने दीक्षा ग्रहण की। - अावश्यकनियुक्ति के अनुसार यहाँ दो तीर्थङ्कर-ऋषभदेव (प्रथम) और अभिनन्दन (चतुर्थ) ने जन्म ग्रहण किया। 36 अन्य ग्रन्थों के अनुसार ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनन्दन, सुमति, अनन्त और अचलभानु की जन्मस्थली और दीक्षास्थली रही है। राम, लक्ष्मण मादि बलदेव-वासुदेवों की भी जन्मभूमि रही है। अचल गणधर ने भी यहाँ जन्म ग्रहण किया था। आवश्यकमलय गिरिवति' 40 के अनुसार अयोध्या के निवासियों ने विविध कलाओं में कुशलता प्राप्त की थी इसलिये अयोध्या को 'कौशला' भी कहते हैं। अयोध्या में जन्म लेने के कारण भगवान् ऋषभदेव कौशलीय कहलाये थे। रामायण काल में अयोध्या बहुत ही समृद्ध नगरी थी। वास्तुकला की दृष्टि से यह महानगरी बहुत ही सुन्दर बसी हई थी। इस नगर में कम्बोजीय अश्व और शक्तिशाली हाथी थे।'४' महाभारत में इस नगरी को पुण्यलक्षणा या शुभलक्षणों वाली चित्रित किया गया है। ऐतरेय ब्राह्मण'४२ आदि में इसे एक गांव के रूप में चित्रित किया है / आवश्यकनियुक्ति में इस नगरी का दूसरा नाम साकेत और इक्ष्वाकु भूमि भी लिखा है।'४३ विविध तीर्थकरूप में रामपुरी और कौशल ये दो नाम और भी दिये हैं। 144 भागवतपुराण में अयोध्या का उल्लेख एक नगर के रूप में किया है / 45 स्कन्ध पुराण के अनुसार अयोध्या मत्स्याकार बसी हई थी।'४६ उसके अनुसार उसका विस्तार पूर्व-पश्चिम में एक योजन, सरय से दक्षिण में तथा तमसा से उत्तर में एक-एक योजन है। कितने ही विज्ञों का यह अभिमत रहा कि साकेत और अयोध्या-ये दोनों नगर एक ही थे। पर रिज़ डेविड्स ने यह सिद्ध किया कि ये दोनों नगर पथक-पृथक थे और तथागत बुद्ध के समय अयोध्या और साकेत ये दोनों नगर थे। 47 हिन्दुनों के सात तीर्थों में अयोध्या का भी एक नाम है। चीनी यात्री फाह्यान जब अयोध्या पहुंचा तो उसने वहाँ पर बौदों और ब्राह्मणों में सौहार्द्र का प्रभाव 'देखा।'४८ दूसरा चीनी यात्री ह्वेनसांग जो सातवीं शताब्दी ईस्वी में भारत आया था, उसने छह सौ 'ली' से भी अधिक यात्रा की थी। वह अयोध्या पहुंचा था। उसने अयोध्या को ही साकेत लिखा है। उस समय अयोध्या वैभवसम्पन्न थी। फलों से बगीचे लदे हुए थे। वहां के निवासी सभ्य और शिष्ट थे। उस समय वहाँ पर सौ से भी अधिक बौद्ध विहार थे और तीन हजार (3000) से भी अधिक भिषु वहां पर रहते थे। वे भिक्षु 138, प्रावस्सक कामेंट्री, पृ. 244 139. मावश्यकनियुक्ति 382 140. आवश्यकमलयगिरिवृत्ति, पृ. 214 141. रामायण पृष्ठ 309, श्लोक 22 से 24 142. (क) ऐतरेय ब्राह्मण VII, 3 और आगे (ख) सांख्यायनसूत्र XV, 17 से 25 143. आवश्यकनियुक्ति 382 144. विविध तीर्थकल्प पृ. 24 145. भागवतपुराण IX 8 / 19 146. स्कन्धपुराण अ. 1, 64, 64 147. बि. च. लाहा, ज्याँग्रेफी प्रॉव अर्ली बुद्धिज्म, प.५ 148. लेगे, ट्रेवल्स प्राव फाह्यान, प. 54-55 [35] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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