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________________ 9. यशस्वी 10. अभिचन्द्र 11. चन्द्राभ 12. प्रसेनजित् 13. मरुदेव 14. नाभि / आचार्य जिनसेन ने संख्या की दृष्टि से चौदह कुलकर माने हैं, किन्तु पहले प्रतिश्रुति, दूसरे सन्मति, तीसरे क्षेमंकृत, चौथे क्षेमंधर, पांचवें सीमकर और छठे सीमंधर, इस प्रकार कुछ व्युत्क्रम से संख्या दी है। विमलवाहन से आगे के नाम दोनों ग्रन्थों में (पउमचरियं और महापुराण में) समान मिलते हैं। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' में इन चौदह नामों के साथ ऋषभ को जोड़कर पन्द्रह कुलकर बताये हैं। इस तरह अपेक्षादृष्टि से कुलकरों की संख्या में मतभेद हुअा है। चौदह कुलकरों में पहले के छह और ग्यारहवा चन्द्राभ के अतिरिक्त सात कुलकरों के नाम स्थानांग आदि के अनुसार ही हैं। जिन ग्रन्थों में छह कुलकरों के नाम नहीं दिये गये हैं, उसके पीछे हमारी दृष्टि से वे केवल पथ-प्रदर्शक रहे होंगे, उन्होंने दण्डव्यवस्था का निर्माण नहीं किया था, इसलिये उन्हें गौण मानकर केवल सात ही कुलकरों का उल्लेख किया गया है। भगवान् ऋषभदेव प्रथम सम्राट् हुए और उन्होंने यौगलिक स्थिति को समाप्त कर कर्मभूमि का प्रारम्भ किया था। इसलिये उन्हें कुलकर न माना हो। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में उन्हें कुलकर लिखा है / सम्भव है मानव समूह के मार्गदर्शक नेता अर्थ में कुलकर शब्द व्यवहुत हुआ हो। कितने ही प्राचार्य इस संख्याभेद को वाचनाभेद मानते हैं। कुलकर के स्थान पर वैदिकपरम्परा के प्रन्थों में मनु का उल्लेख हमा है। पादिपुराण और महापुराण में कुलकरों के स्थान पर मनु शब्द आया है। स्थानांग आदि की भांति मनुस्मृति 65 में भी सात महातेजस्वी मनुओं का उल्लेख है। उनके नाम इस प्रकार हैं--१. स्वयंभू 2. स्वारोचिष् 3. उत्तम 4. तामस 5. रेवत 6. चाक्षुष 7. वैवस्वत / / अन्यत्र चौदह मनुओं के भी नाम प्राप्त होते हैं।८६ वे इस प्रकार हैं--१. स्वायम्भव 2. स्वारोचिष 3. प्रोत्तम 4. तापस 5. रेवत 6. चाक्षुष 7. वैवस्वत 8. सावणि 9. दक्षसावणि 10. ब्रह्मसावणि 11. धर्मसावणि 12. रुद्रसावणि 13. रोच्यदेवसावणि 14. इन्द्रसावणि। मत्स्यपुराण,७ मार्कण्डेयपुराण, देवी भागवत और विष्णु पुराण प्रभति अन्यों में भी स्वायम्भुव आदि चौदह मनुओं के नाम प्राप्त हैं। वे इस प्रकार हैं-१. स्वायम्भुव 2. स्वारोचिष् 3. प्रोत्तमि 4. तापस 5. रंवत 6. चाक्षुष 7. वैवस्वत 8. सावणि 9. रोच्य 10. भौत्य 11. मेहसावणि 12. ऋभु 13. ऋतुधामा _ 14. विश्वसेन / __ मार्कण्डेयपुराण८८ में वैवस्वत के पश्चात् पांचवां सावणि, रोच्य और भौत्य आदि सात मनु और माने हैं। 81. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, व. 2, सत्र 29 52. ऋषभदेव : एक परिशीलन, पृष्ठ 120 53. आदिपुराण, 3 / 15 84. महापुराण, 3 / 229, पृष्ठ 66 85. मनुस्मृति, 1 / 61-63 6. (क) मोन्योर-मोन्योर विलियम : संस्कृत-इंगलिश डिक्शनरी, पृ. 784 (ख) रघुवंश१।११ 87. मत्स्यपुराण, अध्याय 9 से 21 68. मार्कण्डेयपुराण [21] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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