________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [231 वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में तथा चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत उत्तरार्धकच्छविजय नामक विजय बतलाया गया है / अवशेष वर्णन पूर्ववत् है / भगवन ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्धकच्छविजय में सिन्धु-कुण्ड नामक कुण्ड कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! माल्यवान वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, ऋषभकट के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितम्ब में-मेखलारूप मध्यभाग में ढलान में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्धकच्छविजय में सिन्धुकुण्ड नामक कुण्ड बतलाया गया है / वह साठ योजन लम्बाचौड़ा है / भवन, राजधानी आदि सारा वर्णन भरत क्षेत्रवर्ती सिन्धु-कुण्ड के सदृश है / उस सिन्धु-कुण्ड के दक्षिणी तोरण से सिन्धु महानदी निकलती है। उत्तरार्ध कच्छ विजय में बहती है। उसमें वहाँ 7000 नदियाँ मिलती हैं। वह उनसे आपूर्ण होकर नीचे तिमिस्रगुहा से होती हुई वैताढय पर्वत को दीर्ण कर-चीर कर दक्षिणार्ध कच्छ विजय में जाती है। वहाँ 14000 नदियों से युक्त होकर वह दक्षिण में शीता महानदी में मिल जाती है / सिन्धु महानदी अपने उद्गम तथा संगम पर प्रवाह-विस्तार में भरत क्षेत्रवर्ती सिन्धु महानदी के सदृश है / वह दो वनखण्डों द्वारा घिरी है-यहाँ तक का सारा वर्णन पूर्ववत् है / भगवन् ! उत्तरार्ध कच्छ विजय में ऋषभकट नामक पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! सिन्धुकट के पूर्व में, गंगाकट के पश्चिम में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में, उत्तरार्ध कच्छ विजय में ऋषभकूट नामक पर्वत बतलाया गया है। वह पाठ योजन ऊँचा है। उसका प्रमाण, विस्तार, राजधानी पर्यन्त वर्णन पूर्ववत् है / इतना अन्तर है--उसकी राजधानी उत्तर भगवन् ! उत्तरार्ध कच्छ विजय में गंगा-कुण्ड नामक कुण्ड कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, ऋषभकट पर्वत के पूर्व में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में उत्तरार्ध कच्छ में गंगा-कुण्ड नामक कुण्ड बतलाया गया है। वह 60 योजन लम्बा-चौड़ा है। वह एक वन-खण्ड द्वारा परिवेष्टित है—यहाँ तक का अवशेष वर्णन सिन्धु-कुण्ड सदृश है। भगवन् ! वह कच्छ विजय क्यों कहा जाता है ? गौतम ! कच्छ विजय में वैताढय पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, गंगा महानदी के पश्चिम में, सिन्धु महानदी के पूर्व में दक्षिणार्ध कच्छ विजय के बीचोंबीच उसकी क्षेमा नामक राजधानी बतलाई गई है। उसका वर्णन विनीता राजधानी के सदश है / क्षेमा राजधानी में कच्छ नामक षट्खण्ड-भोक्ता चक्रवर्ती राजा समुत्पन्न होता है-वहाँ लोगों द्वारा उसके लिए कच्छ नाम व्यवहृत किया जाता है / अभिनिष्क्रमण—प्रव्रजन को छोड़कर उसका सारा वर्णन चक्रवर्ती राजा भरत जैसा समझना चा कच्छ विजय में परम समृद्धिशाली, एक पल्योपम आयु-स्थितियुक्त कच्छ नामक देव निवास करता है / गौतम ! इस कारण वह कच्छ विजय कहा जाता है / अथवा उसका कच्छ विजय नाम नित्य है, शाश्वत है। Jain Education International For Private &Personal use Only . www.jainelibrary.org