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________________ चतुर्थ बनस्कार [222 दाहिणकच्छविजयं एज्जेमाणी 2 चोद्दसहि सलिलासहस्सेहि समग्गा दाहिणणं सोयं महाणई समप्पेइ। सिंधुमहाणई पबहे अ मूले अ भरहसिंधुसरिसा पमाणेणं जाव दोहि वणसंडेहि संपरिक्खित्ता। कहि णं भन्ते ! उत्तरद्धकच्छविजए उसभकूडे णामं पव्वए पण्णते? * गोयमा ! सिधुकुडस्स पुरथिमेणं, गंगाकुण्डस्स पच्चस्थिमेणं, णीलवन्तस्स वासहरपब्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे एत्थ णं उत्तरद्धकच्छविजए उसहकूडे णामं पव्वए पण्णत्ते / अट्ठ जोगणाई उद्ध उच्चत्तेणं, तं चेव पमाणं जाव रायहाणी से णवरं उत्तरेणं भाणिप्रव्वा / कहि णं भन्ते ! उत्तरद्धफच्छे विजए गंगाकुण्डे णामं कुण्डे पण्णते ? गोयमा ! चित्तकडस्स वक्खारपब्वयस्स पच्चत्थिमेणं, उसहकडस्स पव्वयस्स पुरस्थिमेणं, णोलवन्तस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे एत्थ णं उत्तरद्धकच्छे गंगाकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते / ट्टि जोअणाई आयामविक्खम्भेणं, तहेव जहा सिंधू जाव वणसंडेण य संपरिक्खित्ता। से केण→णं भन्ते ! एवं बुच्चइ कच्छे विजए कच्छे विजए ? गोयमा! कच्छे विजए वेअद्धस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, सीमाए महाणईए उत्तरेणं, गंगाए महाणईए पच्चत्थिमेणं, सिंधूए महाणईए पुरस्थिमेणं दाहिणद्धकच्छविजयस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं खेमा णामं रायहाणी पण्णत्ता, विणीपारायहाणीसरिसा भाणिव्या / तत्थ णं खेमाए रायहाणीए कच्छे णामं राया समुप्पज्जइ, महया हिमवन्त जाव सव्वं भरहोवमं भाणिअव्वं निक्खमणवज्जं सेसं सत्वं भाणिअव्वं जाव भुजए माणुस्सए सुहे। कच्छणामधेज्जे प्र कच्छे इत्थ देवे महिड्डीए जाव' पलिनोवमट्ठिईए परिवसइ, से एएटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ कच्छे विजए कच्छे विजए जाव' णिच्चे। 6110] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में कच्छ नामक विजय कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! शीता महानदी के उत्तर में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में कच्छ नामक विजय--चक्रवर्ती द्वारा विजेतव्य भूविभाग बतलाया गया है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा एवं पूर्व-पश्चिम चौड़ा है, पलंग के आकार में अवस्थित है। गंगा महानदी, सिन्धु महानदी तथा वैताढय पर्वत द्वारा वह छह भागों में विभक्त है। वह 165621 योजन लम्बा तथा कुछ कम 2213 योजन चौड़ा है। कच्छ विजय के बीचोंबीच वैताढय नामक पर्वत बतलाया गया है, जो कच्छ विजय को दक्षिणार्ध कच्छ तथा उत्तरार्ध कच्छ के रूप में दो भागों में बाँटता है। 1. देखें सूत्र संख्या 14 2. देखें सूत्र संख्या 93 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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