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________________ 210] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र मणाभिरामतराए) गंधे पण्णत्ते। से एएणट्ठणं गोयमा! एवं वुच्चइ गंधमायणे वक्खार-पव्वए 2 / गंधमायणे अ इत्थ देवे महिड्डीए परिवसइ, अदुत्तरं च णं सासए णामधिज्जे इति / [103] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में गन्धमादन नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, मन्दर पर्वत के उत्तर-पश्चिम में---वायव्य कोण में, गन्धिलावती विजय के पूर्व में तथा उत्तर कुरु के पश्चिम में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत गन्धमादन नामक वक्षस्कार पर्वत बतलाया गया है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा और पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। उसकी लम्बाई 30206 योजन है। वह नीलवान् वर्षधर पर्वत के पास 400 योजन ऊँचा है, 400 कोश जमीन में गहरा है, 500 योजन चौड़ा है। उसके अनन्तर क्रमशः उसकी ऊँचाई तथा गहराई बढ़ती जाती है, चौड़ाई घटती जाती है। यों वह मन्दर पर्वत के पास 500 योजन ऊँचा हो जाता है, 500 कोश गहरा हो जाता है / उसकी चौड़ाई अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी रह जाती है। उसका आकार हाथी के दाँत जैसा है / वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है / वह दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं द्वारा तथा दो वनखण्डों द्वारा घिरा हुआ है। गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत के ऊपर बहुत समतल, सुन्दर भूमिभाग है। उसकी चोटियों पर जहाँ तहाँ अनेक देव-देवियाँ निवास करते हैं। भगवन् ! गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत के कितने कूट बतलाये गये हैं ? गौतम ! उसके सात कूट बतलाये गये हैं-१. सिद्धायतन कूट, 2. गन्धमादन कुट, 3. गन्धिलावती कूट, 4. उत्तरकुरु कूट, 5. स्फटिक कूट, 6. लोहिताक्ष कूट तथा 7. प्रानन्द कूट / भगवन् ! गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत पर सिद्धायतन कूट कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! मन्दर पर्वत के उत्तर-पश्चिम में, गन्धमादन कूट के दक्षिण-पूर्व में गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत पर सिद्धायतन कूट बतलाया गया है। चुल्ल हिमवान् पर्वत पर सिद्धायतन कूट का जो प्रमाण है, वही इन सब कूटों का प्रमाण है। तीन कूट विदिशाओं में--सिद्धायतन कूट मन्दर पर्वत के वायव्य कोण में,-गन्धमादन कुट सिद्धायतन कूट के वायव्य कोण में तथा गन्धिलावती कूट गन्धमादन कूट के वायव्य कोण में है। चौथा उत्तरकुरु कूट तीसरे गन्धिलावती कूट के वायव्य कोण में तथा पाँचवें स्फटिक कूट के दक्षिण में है। इनके सिवाय बाकी के तीन-स्फटिक कूट, लोहिताक्ष कूट एवं प्रानन्द कूट उत्तर-दक्षिणश्रेणियों में अवस्थित हैं अर्थात् पाँचवाँ कूट चौथे कूट के उत्तर में छठे कूट के दक्षिण में, छठा कूट पाँचवें कूट के उत्तर में सातवें कूट के दक्षिण में तथा सातवाँ कूट छठे कूट के उत्तर में है, स्वयं दक्षिण में है। स्फटिक कुट तथा लोहिताक्ष कूट पर भोगंकरा एवं भोगवती नामक दो दिक्कुमारिकाएँ निवास करती हैं। बाकी के कूटों पर तत्सदृश-कूटानुरूप नाम वाले देव निवास करते हैं / उन कटों पर तदधिष्ठातृ-देवों के उत्तम प्रासाद हैं, विदिशाओं में राजधानियाँ हैं / ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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