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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [201 हरिवर्षक्षेत्र 66. कहि णं भन्ते ! जम्बुद्दीवे दीवे हरिवासे णामं वासे पण्णते? गोयमा! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, महाहिमवन्तवासहरपन्वयस्स उत्तरेणं, पुरस्थिमलवणसमुहस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चस्थिमलवणसमुद्दस्स पुरस्थिमेणं एत्थ णं जम्बुद्दीवे 2 हरिवासे णामं वासे पण्णत्ते / एवं (पुरस्थिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुढें,) पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुदं पुढें। अट्ठ जोगणसहस्साइं चत्तारि अ एगवीसे जोपणसए एगं च एगूणवीसइभागं जोअणस्स विक्खम्भेणं। तस्स बाहा पुरथिमपच्चस्थिमेणं तेरस जोअणसहस्साई तिष्णि प्र एगसळे जोपणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोअणस्स अद्धभागं च आयामेणंति। तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया, दुहा लवणसमुदं पुढा, पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं (लवणसमुदं पुट्ठा, पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं) लवणसमुदं पुट्ठा। तेवतरि जोपणसहस्साई णव य एगुत्तरे जोअणसए सत्तरस य एगणवीसइभाए जोअणस्स अद्धभागं च पायामेणं / तस्स घणु दाहिणणं चउरासीइं जोअणसहस्साई सोलस जोप्रणाइं चत्तारि एगूणवीसइभाए जोअणस्स परिक्खेवेणं / हरिवासस्स णं भन्ते ! वासस्स केरिसए आगारभावपडोपारे पण्णते? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' मणीहि तणेहि अ उवसोभिए एवं मणीणं तणाण य वण्णो गन्धो फासो सदो भाणिअव्वो। हरियासे णं तत्थ 2 देसे तहिं 2 बहवे खुड्डा खुड्डिआओ एवं जो सुसमाए अणुभावो सो चेव अपरिसेसो वत्तव्वोत्ति / कहि णं भन्ते ! हरिवासे वासे विप्रडावई णामं वट्टवेअद्धपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा! हरीए महाणईए पच्चस्थिमेणं, हरिकताए महाणईए पुरथिमेणं, हरियासस्स 2 बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं विप्रडावई णामं वट्टवेअद्धपव्वए पण्णत्ते / एवं जो चेव सद्दावइस्स विक्खंभच्चत्तवेहपरिक्खेवसंठाणवण्णावासो अ सो चेव विमडावइस्सवि भाणिग्रवो। णवरं अरुणो देवो, पउमाइं जाव विश्नडावइवण्णाभाई अरुणे इत्थ देवे महिड्डीए एवं जाव' दाहिणणं रायहाणी अध्या / से केणठेणं भन्ते ! एवं बुच्चइ-हरियासे हरियासे ? गोयमा! हरिवासे णं वासे मणुआ अरुणा, अरुणाभासा, सेआ णं संखदलसण्णिकासा। हरियासे अ इत्थ देवे महिड्डिए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ / MEE] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत हरिवर्ष नामक क्षेत्र कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत हरिवर्ष नामक 1. देखें मूत्र संख्या 6 2. देखें गूत्र संख्या 14 3. देखें सूत्र संख्या 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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