SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 200] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र हरिकान्ताप्रपातकुण्ड के बीचों-बीच हरिकान्त द्वीप नामक एक विशाल द्वीप है। वह 32 योजन लम्बा-चौड़ा है / उसकी परिधि 101 योजन है, वह जल से ऊपर दो कोश ऊँचा उठा हुआ है। वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है / वह चारों ओर एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा घिरा हुआ है / तत्सम्बन्धी प्रमाण, शयनीय आदि का समस्त वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए / हरिकान्ताप्रपातकुण्ड के उत्तरी तोरण से हरिकान्ता महानदी आगे निकलती है। हरिवर्षक्षेत्र में वहती है, विकटापाती वृत्त वैताढ्य पर्वत के एक योजन दूर रहने पर वह पश्चिम की ओर मुड़ती है। हरिवर्षक्षेत्र को दो भागों में बाँटती हुई आगे बढ़ती है। उसमें 56000 नदियाँ मिलती हैं / वह उनसे आपूर्ण होकर नीचे की ओर जम्बूद्वीप की जगती को चीरती हुई पश्चिमी लवण समुद्र में मिल जाती है। हरिकान्ता महानदी जिस स्थान से उद्गत होती है-निकलती है, वहाँ उसकी चौड़ाई पच्चीस योजन तथा गहराई प्राधा योजन है। तदनन्तर क्रमशः उसकी मात्रा प्रमाण बढ़ता जाता है। जब वह समुद्र में मिलती है, तब उसकी चौड़ाई 250 योजन तथा गहराई पाँच योजन होती है / वह दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकानों से तथा दो वनखण्डों से घिरी हुई है। महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के कूट 68. महाहिमवन्ते णं भन्ते ! वासहरपव्वए कइ कूडा पण्णता? गोयमा! अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तंजहा.-१. सिद्धाययणकूडे, 2. महाहिमवन्तकूडे, 3. हेमक्य कूड, 4. रोहिअकूडे, 5. हिरिकूडे, 6. हरिकंतकूडे, 7. हरिवासकूडे, 8. वेरुलिअकूडे / एवं चुल्ल हिमवंतकडाणं जा चेव वत्तव्वया सच्चेव अव्वा / से केणद्वेणं भन्ते ! एवं वुच्चइ महाहिमवते वासहरपन्वए 2 ? / गोयमा ! महाहिमवंते णं वासहरपव्वए चुल्लहिमवंतं वासहरपव्वयं पणिहाय आयामुच्चत्तुव्वेहविक्खम्भपरिक्खेवेणं महंततराए चेव दोहतराए चेव, महाहिमवंते अ इत्थ देवे महिड्ढोए जाव' पलिओवमट्टिइए परिवसइ। [98] भगवन् ! महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के कितने कूट बतलाये गये हैं ? गौतम ! महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के आठ कूट बतलाये गये हैं, जैसे--१. सिद्धायतनकूट, 2. महाहिमवान्कूट, 3. हैमवतकूट, 4. रोहितकूट, 5. होकूट, 6. हरिकान्तकूट, 7. हरिवर्षकूट तथा 8. वैडूर्यकूट / चुल्ल हिमवान् कूटों की वक्तव्यता के अनुरूप ही इनका वर्णन जानना चाहिए। भगवन् ! यह पर्वत महाहिमवान् वर्षधर पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! महाहिमवान् वर्षधर पर्वत, चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत की अपेक्षा लम्बाई, ऊँचाई, गहराई, चौड़ाई तथा परिधि में महत्तर तथा दीर्घतर है—अधिक बड़ा है। परम ऋद्धिशाली, पल्योपम आयुष्ययुक्त महा हिमवान् नामक देव वहाँ निवास करता है, इसलिए वह महाहिमवान् वर्षधर पर्वत कहा जाता है। 1. देखें सूत्र संख्या 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy