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________________ तृतीय वक्षस्कार] [151 स्वर्ण एवं विविध प्रकार की मणियों से चित्रित-विमंडित दो सोने के सिंहासन विशेषरूप से उपहृत किये। फिर राजा ने अष्टदिवसीय महोत्सव प्रायोजित करवाया। खण्डप्रपातविजय 81. तए णं से दिव्वे चक्करयणे गंगाए देवोए अट्टाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालानो पडिणिक्खमइ 2 ता जाव' गंगाए महाणईए पच्चस्थिमिल्लेणं कूलेणं दाहिदिसि खंडप्पवायगुहाभिमुहे पयाए यावि होत्था। ___ तते णं से भरहे राया (तं दिव्वं चक्करयणं गंगाए महाणईए पच्चथिमिल्लेणं कूलेणं दाहिणदिसि खंडप्पवायगुहाभिमुहं पयातं पासइ 2 त्ता) जेणेव खंडप्पवायगुहा तेणेव उवागच्छइ 2 ता सव्वा कयमालवत्तव्वया अव्वा णवरि गट्टमालगे देवे पीतिदाणं से आलंकारिमभंडं कडगाणि अ सेसं सव्वं तहेव जाव अट्टाहिया महामहिमा०। तए णं से भरहे राया पट्टमालस्स देवस्स अट्ठाहिआए म० णिवत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावई सद्दावेइ 2 ता जाव सिंधुगमो अव्वो, जाव गंगाए महाणईए पुरथिमिल्लं णिवखुडं सगंगासागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि अाप्रोवेइ 2 ता अग्गाणि वराणि रयणाणि पडिच्छइ 2 ता जेणेव गंगामहाणई तेणेव उवागच्छइ 2 ता दोच्चपि सक्खंधावारबले गंगामहाणई विमलजलतुंगवीइं णावाभूएणं चम्मरयणणं उत्तरइ 2 ता जेणेव भरहस्स रण्णो विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिमा उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ 2 त्ता प्राभिसेक्काओ हत्थिर यणानो पच्चोरहइ 2 त्ता अग्गाइं वराई रयणाई गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ 2 त्ता करयलपरिग्गहिरं जाव' अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं बद्धावेइ 2 त्ता अग्गाई वराई रयणाई उवणेइ / तए णं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अग्गाई बराई रयणाई पडिच्छइ 2 त्ता सुसेणं सेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ 2 ता पडिविसज्जेइ / तए णं से सुसेणे सेणावई भरहस्स रण्णो सेसंपि तहेव जाव विहरइ / ___तए णं से भरहे राया अण्णया कयाइ सुसेणं सेणावइरयणं सद्दावेइ 2 ता एवं वयासी-गच्छ णं भो देवाणुप्पिना ! खंडपवायगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेहि 2 ता जहा तिमिसगुहाए तहा भाणिप्रबं जाव पि भे भवउ, सेसं तहेव जाव भरहो उत्तरिल्लेणं दुवारेणं अईइ, ससिव्व मेहंधयारनिवहं तहेब पविसंतो मंडलाइं आलिहइ। तीसे णं खंडप्पवायगुहाए बहुमज्झदेसभाए (एत्थ णं) उम्मग्ग-णिमग्ग-जलाओ णामं दुवे महाणईओ तहेव गवरं पच्चथिमिल्लापो कडगाओ पवढायो समाणीनो पुरस्थिमेणं गंगं महाणई समति, सेसं तहेव गरि पच्चस्थिमिल्लेणं कलेणं गंगाए संकमवत्तध्वया तहेवत्ति / तए णं खंडगप्पवायगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सयमेव महया कोंचारवं करेमाणा 2 सरसरस्सगाई ठाणाई पच्चोसक्कित्था। तए णं से भरहे राया चक्क१. देखें सूत्र संख्या 50 2. देखें सूत्र संख्या 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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