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________________ [जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्र मंचकलियं, गाणाविहरागवसणऊसियझयपड़ागाइपडागमंडियं, लाउल्लोइयमहियं, गोसीससरसरत्तचंदणकलसं, चंदणघडसुकय-(तोरणपडिदुवारदेसभायं, प्रासत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं, पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुजोवयारकलियं, कालागुरुपवरकुदुरुक्कतुरुक्कधूवमघमघंत-) गंधुद्ध याभिरामं, सुगंधवरगंधियं, गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह; करेत्ता, कारवेता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुम्बियपुरिसा भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ट० करयल जाव' एवं सामित्ति प्राणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता भरहस्स अंतियानो पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता विणीयं रायहाणि (सभितरबाहिरियं प्रासियसमज्जियसित्तसुइगरत्यंतरवोहियं, मंचाइमंचकलियं, णाणाविहरागवसणऊसियझयपडागाइपडागमंडियं, लाउल्लोइयमहियं, गोसीससरसरत्तचंदणकलसं, चंदणघडसुकय जाव गंधुद्ध याभिरामं, सुगंधवरगंधियं, गंधवट्टिभूयं करेइ, कारवेइ,) करेता, कारवेत्ता य तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। [54] तत्पश्चात् राजा भरत ने कौटुम्बिक पुरुषों को व्यवस्था से सम्बद्ध अधिकारियों को बुलाया, बुलाकर उन्हें कहा-देवानुप्रियो ! राजधानी विनीता नगरी की भीतर और बाहर से सफाई कराओ, उसे सम्माजित करायो, सुगंधित जल से उसे पासिक्त करायो-सुगंधित जल का छिड़काव करायो, नगरी की सड़कों और गलियों को स्वच्छ कराओ, वहाँ मंच, अतिमंच--विशिष्ट या उच्च मंच-मंचों पर मंच निर्मित कराकर उसे सज्जित कराओ, विविध रंगों में रंगे वस्त्रों से निर्मित ध्वजाओं, पताकाओं-छोटी छोटी झंडियों, अतिपताकाओं-बड़ी बड़ी झंडियों से उसे सुशोभित कराओ, भूमि पर गोबर का लेप कराओ, गोशीर्ष एव सरस-पार्द्र लाल चन्दन से सुरभित करो, उसके प्रत्येक द्वारभाग को चंदनकलशों-चंदनचित मंगलघटों और तोरणों से सजायो, नीचेऊपर बडी-बडी गोल तथा लम्बी पूष्पमालाएँ वहाँ लटकाओ, पांचों वर्ण के सरस, सुरभित फलों के गुलदस्तों से उसे सजायो, काले अगर, उत्तम कुन्दरुक, लोबान तथा धूप की गमगमाती महक से वहाँ के वातावरण को रमणीय सुरभिमय बनाओ, जिससे) सुगंधित धुएं की प्रचुरता से वहाँ गोल-गोल धूममय छल्ले से बनते दिखाई दें। ऐसा कर आज्ञा पालने की सूचना करो। राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर व्यवस्थाधिकारी बहुत हर्षित एवं प्रसन्न हुए। उन्होंने हाथ जोड़कर 'स्वामी की जैसी आज्ञा' यों कहकर उसे-शिरोधार्य किया, शिरोधार्य कर राजा भरत के पास से रवाना हुए, रवाना होकर विनीता राजधानी को राजा के आदेश के अनुरूप सजाया, सजवाया और राजा के पास उपस्थित होकर उन्होंने आज्ञापालन की सूचना दी। 55. तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जणघरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे, विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसि णाणामणि-रयणभत्तिचित्तंसि पहाणपीढंसि, सुहणिसणे, सुहोदएहि, गंधोदएहि, पुप्फोदएहि, सुद्धोदएहि य पुण्णे कल्लाणगपवरमज्जणविहीए मज्जिए, तत्थ कोउयसएहि बहुविहेहि कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलूहियंगे, सरससुरहिगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते, 1. देखें सूत्र यही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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