________________ द्वितीय वक्षस्कार [59 34. ह्यलक्षण शालिहोत्र शास्त्र के अनुसार घोड़े के शुभ-अशुभ लक्षणों का ज्ञान, 35. गजलक्षण -हाथी के शुभ-अशुभ लक्षणों का ज्ञान, 36. गोलक्षण-गोजातीय पशुओं के शुभ-अशुभ लक्षणों का ज्ञान, 37. कुक्कुट लक्षण-मुर्गों के शुभ-अशुभ लक्षणों का ज्ञान, 38. छत्रलक्षण-चक्रवर्ती के छत्र-रत्न आदि का ज्ञान, 36. दण्डलक्षण-छत्र आदि में लगने वाले दंड के सम्बन्ध में ज्ञान. 40. असिलक्षण-तलवार सम्बन्धी ज्ञान, 41. मणिलक्षण-रत्न-परीक्षा, 42. काकणिलक्षण-चक्रवर्ती के काकणि-रत्न का विशेष ज्ञान, 43. वास्तुविद्या ---गृह-भूमि के गुण-दोषों का परिज्ञान, 44. स्कन्धावार मान-सेना के पड़ाव या शिविर के परिमाण या विस्तार के सम्बन्ध में ज्ञान, 45. नगरमान--नगर के परिमाण के सम्बन्ध में जानकार गर बसाने की कला, 46. चार-ग्रह-गणना का विशेष ज्ञान, 47. प्रतिचार-ग्रहों के वक्र-गमन आदि प्रतिकूल चाल का ज्ञान, 48. व्यूह -युद्धोत्सुक सेना को चक्रव्यूह आदि के रूप में जमावट, 49. प्रतिव्यूह-व्यूह को भंग करने में उद्यत सेना की व्यूह के प्रतिकूल स्थापना या जमावट, 50. चक्रव्यूह चक्र के आकार की सैन्य-रचना, 51. गरुड़व्यूह-गरुड़ के आकार की सैन्य-रचना. 52. शकटव्यूह--गाड़ी के आकार की सैन्य-रचना, 53. युद्ध, 54. नियुद्ध-मल्ल-युद्ध, 55. युद्धातियुद्ध -घमासान युद्ध, जहाँ दोनों ओर के मरे हुए सैनिकों के ढेर लग जाएँ, 56. दृष्टियुद्ध योद्धा तथा प्रतियोद्धा का आमने-सामने निनिमेष नेत्रों के साथ अपने प्रति द्वन्द्वी को देखते हुए अवस्थित होना, 57. मुष्टियुद्ध-दो योद्धाओं का परस्पर मुक्कों से लड़ना, 58. बाहुयुद्ध योद्धा-प्रतियोद्धा द्वारा एक दूसरे को अपनी फैलायी हुई भुजाओं में प्रतिबद्ध करना, 59. लतायुद्ध --जिस प्रकार लता मूल से लेकर चोटी तक वृक्ष पर चढ़ जाती है, उसी प्रकार एक योद्धा द्वारा दूसरे योद्धा को प्रावेष्टित करना, उसे प्रगाढ रूप में निष्पीडित करना, 60. इषुशास्त्र-नागबाण आदि दिव्यास्त्रसूचक शास्त्र, 61. त्सरुप्रवाद–खड्ग-शिक्षाशास्त्र तलवार चलाने की कला, 62. धनुर्वेद धनुर्विद्या, 63. हिरण्यपाक-रजतसिद्धि, 64. स्वर्णपाक-स्वर्ण सिद्धि, 65. सूत्र-खेल-सूत्र-क्रीडा, 66. वस्त्र-खेल-वस्त्र-क्रीडा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org