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________________ द्वितीय वक्षस्कार] तथा प्रहृष्ट-सुपुष्ट भ्रमरवृन्द जैसे चमकीले, काले, घने, घुघराले, छल्लेदार थे / ) वे मनुष्य सुन्दर, (दर्शनीय, अभिरूप--मनोज्ञ) तथा प्रतिरूप थे--मन को आकृष्ट करने वाले थे / भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में स्त्रियों का आकार-स्वरूप कैसा था ? गौतम ! वे स्त्रियाँ---उस काल की स्त्रियाँ श्रेष्ठ तथा सर्वांगसुन्दरियाँ थीं। वे उत्तम महिलोचित गुणों से युक्त थीं। उनके पैर अत्यन्त सन्दर, विशिष्ट प्रमाणोपेत, मृदुल, सकुमार तथा कच्छपसंस्थान-संस्थित-कछए के आकार के थे। उनके पैरों की अंगुलियाँ सरल, कोमल, परिपुष्ट-मांसल एवं सुसंगत-परस्पर मिली हुई थीं। अंगुलियों के नख समुन्नत, रतिद–देखने वालों के लिए प्रानन्दप्रद, तलिन-पतले, ताम्र-तांबे के वर्ण के हलके लाल, शुचि-मलरहित, स्निग्ध-चिकने थे। उनके जंघा-युगल रोम रहित, वृत्त–वर्तुल या गोल, रम्य-संस्थान युक्त, उत्कृष्ट, प्रशस्त लक्षण युक्त, अत्यन्त सुभगता के कारण अकोप्य-अद्वेष्य थे / उनके जानु-मंडल सुनिमित-सर्वथा प्रमाणोपेत, सुगूढ तथा मांसलता के कारण अनुपलक्ष्य थे, सुदृढ स्नायु-बंधनों से युक्त थे / उनके ऊरु केले के स्तंभ जैसे आकार से भी अधिक सुन्दर, फोड़े, फुन्सी आदि के घावों के चिह्नों से रहित, सुकुमार, सुकोमल, मांसल, अविरल-परस्पर सटे हुए जैसे, सम, सदृश-परिमाण युक्त, सुगठित, सुजात—सुन्दर रूप में समुत्पन्न, वृत्त वर्तुल-गोल, पीवर-मांसल, निरंतर अंतर रहित थे / उनके श्रोणिप्रदेश धुण आदि कीड़ों के उपद्रवों से रहित-उन द्वारा नहीं खाए हए-अखंडित द्यत-फलक जैसे प्राकार युक्त, प्रशस्त विस्तीर्ण, तथा पृयुथ–स्थूल-मोटे या भारी थे। विशाल, मांसल, सुगठित और अत्यन्त सुन्दर थे / उनकी देह के मध्यभाग वज्ररत्न हीरे जैसे सुहावने, उत्तम लक्षण युक्त, विकृत उदर रहित, त्रिवली-तीन रेखाओं से युक्त, बलित-सशक्त अथवा वलित–गोलाकार एवं पतले थे। उनकी रोमराजियाँ-रोमावलियाँ सरल, सम-बराबर, संहित-परम्पर मिली हुई, उत्तम, पतली, कृष्ण वर्ण युक्त-काली, चिकनी, प्रादेय--स्पृहणीय, लालित्यपूर्ण-सुन्दरता से युक्त तथा सुरचितस्वभावतः सुन्दर, सुविभक्त, कान्त-कमनीय, शोभित और रुचिकर थीं। उनकी नाभि गंगा के भंवर की तरह गोल, दाहिनी ओर चक्कर काटती हुई तरंगों की ज्यों घुमावदार, सुन्दर, उदित होते हुए सूर्य की किरणों से विकसित होते कमलों के समान विकट--गढ़ तथा गंभीर थी। उनके कुक्षिप्रदेशउदर के नीचे के दोनों पार्श्व अनुभट-अस्पष्ट-मांसलता के कारण सा प्रशस्त उत्तम---श्लाघ्य तथा पीन स्थूल थे / उनकी देह के पार्श्वभाग-पसवाड़े सन्नत-क्रमशः संकड़े, संगतदेह के परिमाण के अनुरूप सुन्दर, सुनिष्पन्न, अत्यन्त समुचित परिमाण में मांसलता लिए हुए मनोहर थे। उनकी देहयष्टियां-देहलताएँ ऐसी समुपयुक्त मांसलता लिए थीं, जिससे उनके पीछे की हड्डी नहीं दिखाई देती थीं / वे सोने की ज्यों देदीप्यमान, निर्मल, सुनिर्मित, निरुपहतरोग रहित थीं / उनके स्तन स्वर्ण-घट सदृश थे, परस्पर समान, संहित–परस्पर मिले हुए से, सुन्दर अग्रभाग युक्त, सम श्रेणिक, गोलाकार, अभ्युन्नत-उभार युक्त, कठोर तथा स्थूल थे। उनकी भुजाएँ सर्प की ज्यों क्रमश: नीचे की ओर पतली, गाय की पूंछ की ज्यों गोल, परस्पर समान, नमित-झुकी हई, आदेय तथा सुललित थीं। उनके नख तांबे की ज्यों कुछ-कुछ लाल थे। उनके हाथों के अग्रभाग मांसल थे। अंगुलियाँ पीवर--परिपुष्ट, कोमल तथा उत्तम थीं / उनके हाथों की रेखाएं चिकनी थीं। उनके हाथों में सूर्य, शंख, चक्र तथा स्वस्तिक की सुस्पष्ट, सुविरचित रेखाएँ थीं। उनके कक्षप्रदेश, वक्षस्थल तथा वस्तिप्रदेश-गुह्यप्रदेश पुष्ट एवं उन्नत थे। उनके गले तथा गाल प्रतिपूर्ण-भरे हुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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