Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
Eleventh Discourse [75 They speak Satya-bhasa (truthful speech), Asatya-bhasa (untruthful speech) and Satya-mrisha (mixed) speech / That is, they speak all four types of speech.] Different forms of language-objects that can be grasped by the Jiva - 877. [1] O Bhagavan! What kind of objects does the Jiva grasp as language? Does it grasp sthita (non-moving) objects or asthita (moving) objects? [877-1 U.] Gautama! (It) grasps sthita objects, not asthita objects. [2] O Bhagavan! What kind of sthita objects does (the Jiva) grasp? Does it grasp them from dravya (substance), kshetra (field), kala (time) or bhava (emotion)? [877-2 U.] Gautama! (It) grasps them from dravya, kshetra, kala and bhava. [3] O Bhagavan! What kind of dravya (objects) does (the Jiva) grasp? Does it grasp them from ekapadesiya (one-part), du-padesiya (two-part) or up to ananta-padesiya (infinite-part)? [877-3 U.] Gautama! (The Jiva) does not grasp ekapadesiya objects, up to asankhyeya-padesiya objects, (but) it grasps ananta-padesiya objects. [4] O Bhagavan! What kind of kshetra (objects) does (the Jiva) grasp? Does it grasp them from ekapadeso-gadhai (one-part-strength), du-padeso-gadhai (two-part-strength) or up to asankhyeya-padeso-gadhai (infinite-part-strength)? 1. Prajnapanasutra Malay. Vritti, page 260
________________ ग्यारहवाँ भाषापद [75 वे सत्यभाषा भी बोलते है, असत्यभाषा भी बोलते हैं और सत्यामृषा (मिश्र) भाषा भी बोलते हैं / अर्थात्-वे चारों ही प्रकार की भाषा बोलते हैं।' जीव द्वारा ग्रहणयोग्य भाषाद्रव्यों के विभिन्नरूप--- 877. [1] जीवे णं भंते ! जाई दवाई भासत्ताए गेण्हति ताई किं ठियाई गेण्हति ? अठियाई गेहति ? ___ गोयमा ! ठियाई मेण्हति, णो अठियाइं गेण्हति / [877-1 प्र.] भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है, सो स्थित (गमनक्रियारहित) द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित (गमन क्रियावान्) द्रव्यों को ग्रहण करता है ? [877-1 उ.] गौतम! (वह) स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अस्थित द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता। [2] जाई भंते ! छियाई गेण्हति ताई कि दव्वश्रो गेण्हति ? खेतम्रो गेण्हति ? कालो गेण्हति ? भावो गेण्हति ? गोयमा ! दवप्रो वि गेहति, खेत्तो वि गेण्हति, कालो वि गेहति, भावनो वि गेहति / [877-2 प्र.] भगवन् ! (जीव) जिन स्थित द्रव्यों को (भाषा के रूप में) ग्रहण करता है, उन्हें क्या (वह) द्रव्य से ग्रहण करता है, क्षेत्र से ग्रहण करता है, काल से ग्रहण करता है, अथवा भाव से ग्रहण करता है ? [877-2 उ.] गौतम ! (वह उन स्थित द्रव्यों को) द्रव्यतः भी ग्रहण करता है, क्षेत्रतः भी ग्रहण करता है, कालत: भी ग्रहण करता है और भावतः भी ग्रहण करता है। [3] जाई दव्वो गेहति ताई कि एगपएसियाई गिण्हति दुपएसियाई गेण्हति जाव अणंतपएसियाई गेहति ? गोयमा ! णो एगपएसियाई गेण्हति जाव णो असंखेज्जपएसियाई गेण्हति, अणंतपएसियाई गेहति / [877-3 प्र.] भगवन् (जीव) जिन (स्थित द्रव्यों) को द्रव्यत: ग्रहण करता है, क्या वह उन एकप्रदेशी (द्रव्यों) को ग्रहण करता है, द्विप्रदेशी को ग्रहण करता है ? यावत् अनन्तप्रदेशी द्रव्यों को ग्रहण करता है ? [877-3 उ.] गौतम ! (जीव) न तो एकप्रदेशी द्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत् न असंख्येयप्रदेशी द्रव्यों को ग्रहण करता है, (किन्तु) अनन्तप्रदेशी द्रव्यों को ग्रहण करता है। [4] जाई खेत्तनो ताई कि एगपएसोगाढाई गेण्हति दुपएसोगाढाई गेहति जाव असंखेज्जपए. सोगाढाइं गेहति ? 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 260 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org