________________ चतुर्थ स्थितिपद] [299 [340-1 प्र.] भगवन् ! धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही [340-1 उ.] गौतम ! जघन्य दस सागरोपम की और उत्कृष्ट सत्रह सागरोपम को है / [2] अपज्जत्तयधूमप्पभापुढविनेरइयाणं अंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहणेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुन् / [340-2 प्र.] भगवन् ! धूमप्रभापृथ्वी के अपर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कितने काल को कही गई है ? __ [340-2 उ.] गौतम ! (उनको स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भो अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयधमपभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहष्णेणं दस सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाइं अंतोमहत्तूणाई। [340-3 प्र.] भगवन् ! धूमप्रभापृथ्वी के पर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल को कही गई है ? [340-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस सागरोपम को और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सत्तरह सागरोपम की है / 341. [1] तमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहणेणं सत्तरस सागरोवमाई, उक्कोसेणं बाबीसं सागरोवमाई। [341-1 प्र.] भगवन् ! तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की कितने काल की स्थिति कहो गई है ? [341-1 उ.] गौतम ! जघन्य सत्तरह सागरोपम की और उत्कृष्ट बाईस सागरोपम की है। [2] अपज्जत्तयतमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहण्णण वि अंतोमहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं / [341-2 प्र.] भगवन् ! तमःप्रभापृथ्वी के अपर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [341-2 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] पज्जत्तयतमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णणं सत्तरस सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं बाबीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई। _[341-3 प्र.] भगवन् ! तमःप्रभापृथ्वी के पर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org