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**207. The Fourth Pratyapatti with Five Titharas**
Those who teach that there are five types of *samsara* -bound beings, describe them as follows: *Ekeindriya*, *Dveindriya*, *Treindriya*, *Chaturindriya*, and *Panchendriya*.
**O Bhagavan!** How many types of *Ekeindriya* beings are there?
**Gautama:** *Ekeindriya* beings are of two types: *Parjatta* (sufficient) and *Aparjatta* (insufficient).
**Similarly**, all the way to *Panchendriya*, there are two types: *Parjatta* and *Aparjatta*.
**O Bhagavan!** What is the duration of the *Ekeindriya* being's existence?
**Gautama:** The duration of the *Ekeindriya* being's existence is from the *jghanya* (lowest) *antarmuhurta* (a very short period of time) to the *utkrista* (highest) twenty-two thousand years.
**Similarly**, the duration of the *Dveindriya* being's existence is from the *jghanya* *antarmuhurta* to the *utkrista* twelve years. The duration of the *Treindriya* being's existence is forty-nine nights and days. The duration of the *Chaturindriya* being's existence is six months. The duration of the *Panchendriya* being's existence is from the *jghanya* *antarmuhurta* to the *utkrista* thirty-three *sagaropama* (a vast period of time).
**O Bhagavan!** What is the duration of the *Aparjatta* *Ekeindriya* being's existence?
**Gautama:** The duration of the *Aparjatta* *Ekeindriya* being's existence is from the *jghanya* *antarmuhurta* to the *utkrista* *antarmuhurta*.
**Similarly**, the duration of all the *Aparjatta* beings should be described.
**O Bhagavan!** What is the duration of the *Parjatta* *Ekeindriya* to the *Parjatta* *Panchendriya* beings?
**Gautama:** The duration of the *Parjatta* *Ekeindriya* to the *Parjatta* *Panchendriya* beings is from the *jghanya* *antarmuhurta* to the *utkrista* twenty-two thousand years minus one *antarmuhurta*.
**Similarly**, the duration of all the *Parjatta* beings should be described as their total duration minus one *antarmuhurta*.
________________ पञ्चतिधारया चतुर्थ प्रतिपत्ति 207. तत्थ जंजे ते एवमाहंसु-पंचविहा संसारसमावण्णगा जीया, ते एवमाहंसु, तं जहाएगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चरिदिया, पंचिदिया। से कि तं एगिदिया ? एगिदिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य / एवं जाव पंचिदिया दुविहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगाय। एगिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उपकोसेणं बावीसं वाससहस्साई। बेइंदियस्स० जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बारस संवच्छराणि / एवं तेइंदियस्स एगणपण्णं राईदियाणं, चरिदियस्स छम्मासा, पंचिदियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। अपज्जत्तएगिदियस्स णं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं / एवं सव्वेसि / पज्जगिदियाणं णं जाव पंचिंदियाणं पुच्छा ? जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई। एवं उक्कोसियावि ठिई अंतोमुहुतूणा सम्बेसि पज्जत्ताणं कायवा। 207. जो प्राचार्यादि ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि संसारसमापन्नक जीव पांच प्रकार के हैं, वे उनके भेद इस प्रकार कहते हैं, यथा-एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, और पंचेन्द्रिय / भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों के कितने प्रकार हैं ? गौतम ! एकेन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैंपर्याप्त एकेन्द्रिय और अपर्याप्त एकेन्द्रिय / इस प्रकार पंचेन्द्रिय पर्यन्त सबके दो-दो भेद कहने चाहिये-पर्याप्त और अपर्याप्त / __ भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष की / द्वीन्द्रिय की जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट बारह वर्ष की, श्रीन्द्रिय की 49 उननचास रात-दिन की, चतुरिन्द्रिय की छह मास की और पंचेन्द्रिय की जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति है। भगवन् ! अपर्याप्त एकेन्द्रिय की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की स्थिति है / इसी प्रकार सब अपर्याप्तों की स्थिति कहनी चाहिए। - भगवन् ! पर्याप्त एकेन्द्रिय यावत् पर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवों की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बावीस हजार वर्ष की स्थिति है / इसी प्रकार सब पर्याप्तों को उत्कृष्ट स्थिति उनकी कुलस्थिति से अन्तर्मुहूर्त कम कहनी चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org