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[149] (1) Bhagavan! Where is the lake called Neelavant located in the Uttarakuru region? _ Gautam! In the south of the Yamaka mountains, eight hundred and thirty-four yojanas and four and seven-eighths yojanas further, in the middle of the Sita Mahanadi, the lake called Neelavant in the Uttarakuru region is said to be located. It is long from north to south and wide from east to west / It is one thousand yojanas long and five hundred yojanas wide. It is ten yojanas high [deep], clear, smooth, with silver banks, it is a four-sided square, even and symmetrical, as far as its form goes / It is surrounded on both sides by lotus-shaped platforms and forest tracts on all sides / The description of both should be given here. In the lake called Neelavant, many three-tiered platforms are said to be located here and there. Their description should be given up to the torana. In the middle of that Neelavant lake, a large lotus is said to be located / That lotus is one yojana long and one yojana wide. Its circumference is three times this plus a little more. Its
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________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र 149. (1) कहि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए नीलवंत दहे णामंदहे पण्णते ? गोयमा! जमगयव्ययाणं दाहिणणं अटुचोत्तीसे जोयणसए चत्तारि सत्तभागा जोयणस्स अबाहाए सीताए महाणईए बहुमज्मदेसभाए एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए नीलवंतहहे णामं बहे पण्णते; उत्तरदक्षिणायए पाईणपडीविच्छिन्ने एगं जोयणसहस्सं आयामेणं पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं दस जोयणाई उन्हेणं अच्छे सण्हे रययामयकले चउक्कोणे समतोरे जाव पडिरूवे / उभओ पासि दोहिं य पउमवरवेइयाहिं वणसंडेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णो / नीलबंतदहस्स णं दहस्स तत्थ तत्थ जाव बहवे तिसोवाण पहिरवगा पण्णत्ता, वण्णओ भाणियन्वो जाय तोरण त्ति। तस्स णं नीलवंतदहस्स णं दहस्स बहुमज्मदेसभाए एस्थ णं एगे महं पउमे पण्णते, जोयणं आयाम-विक्खंभेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं दस जोयणाई उम्वेहेणं दो कोसे ऊसिए जलंताओ, साइरेगाइं दसद्धजोयणाई सम्यग्गेणं पण्णत्ते। तस्स णं पउमस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तंजहा-वइरामया मूला, रिद्वामए कंदे, वेरुलियामए नाले वेरुलियमया बाहिरपत्ता जंबूणयमया अम्भितरपत्ता तकणिज्जमया केसरा कणगामई कणिया नानामणिमया पुक्खर स्थिभुया। ___सा णं कणिया अद्धजोयणं आयामविक्खमेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं कोसं बाहल्लेणं सम्वप्पणा कणगमई अच्छा सहा जाय पडिरूवा।। तीसे णं कणियाए उरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभाए पण्णते जाव मणिहि / तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ गं एगे महं भवणे पण्णते, कोसं आयामेणं अद्धकोसं विखंमेणं देसूर्ण कोसं उड्ढंउच्चत्तेणं अणेगखंभसयसनिविद्रं जाव वण्णओ। तस्स गं भवणस्स तिदिसि तओ वारा पण्णत्ता पुरथिमेणं दाहिणणं उत्तरेणं / ते णं दारा पंचधणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं अड्डाइज्जाई धणुसयाई विक्खंमेणं तावइयं चेव पवेसेणं सेया वरकणगयूभियागा जाव वणमालाओ ति। [149] (1) भगवन् ! उत्तरकुरु नामक क्षेत्र में नीलवंत द्रह नाम का द्रह कहाँ कहा गया है? ___ गौतम ! यमक पर्वतों के दक्षिण में आठ सौ चौतीस योजन और योजन आगे जाने पर सीता महानदी के ठीक मध्य में उत्तरकुरु-क्षेत्र का नीलवंत द्रह नाम का द्रह कहा गया है। यह उत्तर से दक्षिण तक लम्बा और पूर्व-पश्चिम में चौड़ा है / एक हजार योजन इसकी लम्बाई है और पांच सौ योजन की चौड़ाई है। यह दस योजन ऊँचा [गहरा] है, स्वच्छःहै, श्लक्ष्ण है, रजतमय इसके किनारे हैं, यह चतुष्कोणापौर समतीर है यावत् प्रतिरूप है / यह दोनों ओर से पद्मवरवेदिकाओं और वनखण्डों से चौतरफ घिरा हुआ है / दोनों का वर्णनक यहाँ कहना चाहिए। नीलवंतद्रह नामक द्रह में यहाँ-वहाँ बहुत से त्रिसोपानप्रतिरूपक कहे गये हैं। उनका वर्णनक तोरण पर्यन्त कहना चाहिए। उस नीलवंत नामक द्रह के मध्यभाग में एक बड़ा कमल कहा गया है / वह कमल एक योजन का लम्बा और एक योजन का चौड़ा है। उसकी परिधि इससे तिगुनी से कुछ अधिक है। इसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003482
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages736
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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