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The Third Chapter: Description of the Forest (355 126. (6) It has been said that the color of those white grasses and gems is like that of an Anka gem, a conch shell, the moon, a Kunda flower, a Kumuda (white lotus), a drop of water, (curdled milk, milk, a stream of milk), a row of swans, a row of Krouncha birds, a row of pearl necklaces, a row of silver bangles, a row of moons reflected in the waves of a lake, autumn clouds, a silver plate washed in fire, a plate of ground rice, a cluster of Kunda flowers, a cluster of Kumudas, a dry bean pod, the middle part of a peacock feather, a Mrinala, a Mrinalika, an elephant's tusk, a clove leaf, the petals of a white lotus, a garland of Sindhuvara flowers, a white Ashoka tree, a white Kaner tree, a white Bandhujeevak tree, Bhagavan! Is the color of those white grasses and gems like this? Gautam! This is not true. / The color of those grasses and gems is said to be even more desirable, beautiful, pleasing, and attractive. [126] (7) Bhagavan! What is the fragrance of those grasses and gems said to be like? Like that of Koष्ट (a type of fragrant substance) pots, Patra pots, Choya pots (a type of fragrant substance), Tagar pots, Elaichi pots, Chandan pots, 1. 'Kirimeripudaan wa' is sometimes found in the text.
________________ तृतीय प्रतिपत्ति : वनखण्ड वर्णन (355 126. (6) तत्थ णं जे ते सुक्किलगा तणा य मणी य तेसि णं अयमेयारवे वण्णावासे पण्णतेसे जहाणामए अंके इ वा संखे इ वा, चंदे इवा, कुवे इवा, कुमुए इवा, दयरए इ वा (वहिधणे इवा, खीरे इ वा, खोरपूरे इ वा) हंसावली इबा, कोंचावली इवा, हारावली इवा, बलायावली इवा, चंदावलो इवा, सारइयबलाहए इ वा, धंतधोयरप्पपट्टे इ वा, सालिपिरासी इवा, कुवयुप्फरासी / वा, कुमुयरासीई वा, सुक्कछिवाडी इ वा, पेहुणमिजा इ वा, बिसे इ वा, मिणालिया इवा, गयवंते इ वा, लवंगवले इ वा, पोंडरीयदले इ वा, सिंदुवारमल्लदामे इ वा, सेतासोए इवा, सेयकणवीरे इ वा, सेयबंधुजीवए इ बा, भवे एयारवे सिया? णो तिणठे समझें / तेसि गं सुविकलाणं तणाण मणीण य एतो इट्ठयराए चेव जाव वण्णेणं पण्णत्ते। [126] (6) उन तृणों और मणियों में जो सफेद वर्ण वाले तृण और मणियां हैं उनका वर्ण इस प्रकार का कहा गया है जैसे अंक रत्न हो, शंख हो, चन्द्र हो, कुंद का फूल हो, कुमुद (श्वेत कमल) हो, पानी का बिन्दु हो, (जमा हुआ दही हो, दूध हो, दूध का समूह-प्रवाह हो), हंसों की पंक्ति हो, क्रौंचपक्षियों की पंक्ति हो, मुक्ताहारों की पंक्ति हो, चांदी से बने कंकणों की पंक्ति हो, सरोवर की तरंगों में प्रतिबिम्बित चन्द्रों की पंक्ति हो, शरदऋतु के बादल हों, अग्नि में तपाकर धोया हुआ चांदी का पाट हो, चावलों का पिसा हुमा पाटा हो, कुन्द के फूलों का समुदाय हो, कुमुदों का समुदाय हो, सूखी हुई सेम की फली हो, मयूरपिच्छ की मध्यवर्ती मिजा हो, मृणाल हो, मृणालिका हो, हाथी का दांत हो, लवंग का पत्ता हो, पुण्डरीक (श्वेतकमल) की पंखुडियां हों, सिन्दुवार के फूलों की माला हो, सफेद अशोक हो, सफेद कनेर हो, सफेद बंधुजीवक हो, भगवन् ! उन सफेद तणों और मणियों का ऐसा वर्ण है क्या ? गौतम ! यह यथार्थ नहीं है / इनसे भी अधिक इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर उन तृणों और मणियों का वर्ण कहा गया है / 126. (7) तेसि गं भंते ! तणाण य मणीण य केरिसए गंधे पण्णत्ते ?से जहाणामए-कोटपुडाण वा, पत्तपुडाण वा, चोयपुडाण वा, तगरपुडाण वा, एलापुडाण वा' चंदणपुडाण वा कुंकुमपुडाण वा, उसीरपुडाण वा, चंपकपुडाण वा, मरुयगपुडाण वा, दमणगपुडाण वा, जातिपुडाण वा, जहियापुडाण वा, मल्लियपुडाण वा, जोमालियपुडाण वा, वासंतिपुडाण वा, केयइपुडाण वा, कप्पूरपुडाण वा, अणुवायंसि उभिज्जमाणाण य णिभिज्जमाणाण य कोटेजमाणाण वा रुविज्जमाणाण वा उधिकरिज्जमाणाण वा विकिरिज्जमाणाण वा परिभज्जमाणाण वा भंडाओ भंडसाहरिज्जमाणाणधा ओराला मणण्णा घाणमनिव्वइकरा सव्वओ समंता गंधा अभिणिस्सवंति, भवे एयारूवे सिया? जो तिणठे समझें। तेसि णं तणाणं मणीण य एत्तो उ इट्टतराए चेव जाव मणामतराए चेव गंधे पण्णत्ते। [126] (7) हे भगवन् ! उन तृणों और मगियों की गंध कैसी कही गई है ? जैसे कोष्ट(गंधद्रव्यविशेष) पुटों, पत्रपुटों, चोयपुटों (गंधद्रव्यविशेष), तगरपुटों, इलायचोपुटों, चंदनपुटों, 1. 'किरिमेरिपुडाण वा' क्वचित् पाठो दृश्यते / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org