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Third Pratipatti: Description of the Forest Region
[353] Or they may be like the following: Gavalaguliya, Bhamara, Bhamaravaaliya, Bhamara-pattaga-saara, Jaambu-phala, Addaaritha, Parapudha, Gaya, Gayakalama, Kanha-sappa, Kanha-kesara, Aagas-thigga-la, Kanha-asoya, Kanha-kanaveera, Kanha-bandhujeevayi. Gautama! Are such black-colored ones possible? No, they are not like that. Rather, their color is more desirable, lovely, dear, charming, and delightful.
[126] (2) Among those grasses and gems, the ones that are of black color are described as follows: like a rain-filled cloud at the beginning of the rainy season, or like the Sauveera-aanjana or aanjana gem, or like the Khanjana (a type of insect), or like lampblack, or like dissolved lampblack, or like a ball made of dissolved lampblack, or like the horn of a buffalo, or like a ball made from the horn of a buffalo, or like a bee, or like a row of bees, or like the space between the wings of bees, or like a Jaambu fruit, or like a wet Aarittha, or like a cuckoo, or like an elephant, or like an elephant calf, or like a black snake, or like a black bakula, or like a clear patch of sky, or like a black Ashoka, or like a black Kaneera, or like a black Bandhujeevayi.
[126] (3) Among those grasses and gems, the ones that are of blue color are described as follows: like a blue Bhramara (a type of insect), or like the wing of a blue Bhramara, or like a Chaasa (a type of bird), or like the feather of a Chaasa, or like a blue Shuka (parrot), or like the feather of a Shuka, or like the color blue, or like a piece of blue, or like a blue ball, or like Shyaamaka (a type of grain), or like a blue tooth-cleaner, or like a blue forest, or like the blue garment of Balaraama, or like the neck of a peacock, or like the neck of a pigeon, or like the flower of Alasi, or like the flower of Anjanakaeshikaa, or like a blue lotus, or like a blue Ashoka, or like a blue Kaneera, or like a blue Bandhujeevayi. Bhoh! Is such a blue color possible for them? Gautama! It is not so.
[126] (4) Among those grasses and gems, the ones that are of red color are described as follows: like the blood-red lotus, or like the blood-red lotus of a wild buffalo, or like the blood-red lotus of a wild boar, or like the blood-red lotus of a buffalo, or like the blood-red lotus of a Baali-dago-vaya, or like the blood-red lotus of a Baali-vivaagara, or like Saamshabhraaga, or like Gujaraaga, or like Jaati-hingula.
________________ तृतीय प्रतिपत्ति : वनखण्ड वर्णन] [353 वा, गवलगुलिया इ वा, भमरे इ वा, भमरावलिया इवा, भमरपत्तगयसारे इ वा, जंबूफले इ वा, अद्दारिठे इ वा, परपुढे इवा, गए इवा, गयकलमे इ वा, कण्हसप्पे इ वा, कण्हकेसरे इ वा, आगासथिग्गले इ वा, कण्हासोए इ वा, कण्हकणवीरे इ वा, कण्हबंधुजीवए इ वा, भवे एयारूवे सिया ? गोयमा ! णो तिणटठे समझें / सेसि णं कण्हाणं तणाणं मणीण य इत्तो इट्टयराए चेव कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वणे णं पण्णत्ते।। [126] (2) उन तृणों और मणियों में जो काले वर्ण के तृण और मणियां हैं, उनका वर्णावास इस प्रकार कहा गया है-जैसे वर्षाकाल के प्रारम्भ में जल भरा बादल हो, सौवीर अंजन अथवा अञ्जन रत्न हो, खञ्जन (दीपमल्लिका मैल, गाड़ी का कीट) हो, काजल हो, काली स्याही हो (घुला हुया काजल), घुले हुए काजल को गोली हो, भैसे का शृग हो, भैसे के शृग से बनी गोली हो, भंवरा हो, भौरों की पंक्ति हो, भंवरों के पंखों के बीच का स्थान हो, जम्बू का फल हो, गीला अरीठा हो, कोयल हो, हाथी हो, हाथी का बच्चा हो, काला सांप हो, काला बकुल हो, बादलों से मुक्त आकाशखण्ड हो, काला अशोक, काला कनेर और काला बन्धुजीव (वृक्ष) हो / हे भगवन् ! ऐसा काला वर्ण उन तृणों और मणियों का होता है क्या? हे गौतम! ऐसा नहीं है। इनसे भी अधिक इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर उनका वर्ण होता है। 126.[3] तस्थ णं जे ते णीलगा तणा य मणी य तेसि णं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते-से जहानामए भिगे इ वा, भिंगपत्ते इबा, चासे इ वा, चासपिच्छे इ वा, सुए इ वा, सुयपिच्छे इ वा, णीली इ वा, पीलीभेए इ बा, गोलीगुलिया इवा, सामाए इ वा, उच्चसए इवा, वणराई इ वा, हलधरवसणे इ वा, मोरगीवा इ वा, पारेवयगोवा इ वा, अयसिकुसुमे इ वा, अंजणकेसिगाकुसुमे इ वा, णीलुप्पले इ वा, गोलासोए इ वा, णीलकणवीरे इ वा, गोलबंधुजीवए इ वा, भवे एयारूवे सिया? भो इणठे समझें / तेसि णं णीलगाणं तणाणं मणीण य एत्तो इद्रुतगराए चेव कंततराए चेव जाव वण्णणं पण्णत्ते। [126] (3) उन तृणों और मणियों में जो नीलो मणियां और नीले तृण हैं, उनका वर्ण इस प्रकार का है-जैसे नीला भ्रग (भिंगोडी-पंखवाला लघु जन्तु-नीला भंवरा) हो, नीले भ्रग का पंख हो, चास (पक्षीविशेष) हो, चास का पंख हो, नीले वर्ण का शुक (तोता) हो, शुक का पंख हो, नील हो, नीलखण्ड हो, नील की गुटिका हो, श्यामाक (धान्य विशेष) हो, नीला दंतराग हो, नीली वनराजि हो, बलभद्र का नीला वस्त्र हो, मयूर की ग्रीवा हो, कबूतर की ग्रीवा हो, अलसी का फूल हो, अजनकेशिका वनस्पति का फूल हो, नीलकमल हो, नीला अशोक हो, नीला कनेर हो, नीला बन्धुजीवक हो, भगवन् ! क्या ऐसा नीला उनका वर्ण होता है ? गौतम ! यह बात नहीं है / इनसे भी अधिक इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर उन नीले तृण-मणियों का वर्ण होता है / 126. [4] तत्थ णं जे ते लोहितगा तणा य मणी य तेसि णं अयमेयारूचे वण्णावासे पणत्तेसे जहानामए ससकरुहिरे इ वा, उरभरुहिरे इ वा, पररुहिरे इ वा, वराहरुहिरे इ वा, महिसरुहिरे इ वा, बालिदगोवए इ वा, बालविवागरे इबा, संशभरागे इ वा, गुजरागे इ वा, जातिहिंगुलुए इवा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org