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## Third Chapter: Four Types of World-Ending Beings
**[197 66. "Bhagavan! How many types of Ratnapraba-pṛthvī are there?" "Gautama! There are three types, namely: 1. Khara-kaṇḍa, 2. Panka-bahula-kaṇḍa, and 3. Apa-bahula-kaṇḍa."**
**"Bhagavan! How many types of Khara-kaṇḍa of Ratnapraba-pṛthvī are there?" "Gautama! There are sixteen types, namely: 1. Ratna-kaṇḍa, 2. Vajra-kaṇḍa, 3. Vaidūrya, 4. Lohita-akṣa, 5. Māsāra-galla, 6. Hamsa-garbha, 7. Pulaka, 8. Saugandhika, 9. Jyotiras, 10. Anjana, 11. Anjana-pulaka, 12. Rajata, 13. Jātarūpa, 14. Aṅka, 15. Sphatika, and 16. Riṣṭha-kaṇḍa."**
**"Bhagavan! How many types of Ratna-kaṇḍa of Ratnapraba-pṛthvī are there?" "Gautama! There is only one type."**
**"Similarly, all the way to Riṣṭha-kaṇḍa, it should be said that there is only one type."**
**"Bhagavan! How many types of Panka-bahula-kaṇḍa of Ratnapraba-pṛthvī are there?" "Gautama! There is only one type."**
**"Similarly, how many types of Apa-bahula-kaṇḍa are there?" "Gautama! There is only one type."**
**"Bhagavan! How many types of Śarkara-praba-pṛthvī are there?" "Gautama! There is only one type."**
**"Similarly, all the way to Adhaḥ-saptama-pṛthvī, it should be said that there is only one type."**
________________ तृतीय प्रतिपत्ति: चार प्रकार के संसारसमापन्नक जीव] [197 66. इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी कतिविहा पण्णता ? गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-खरकंडे, पंकबहुले कंडे, आवबहुले कंडे / इमोसे णं भंते ! रयणप्पभापुढवीए खरकंडे कतिविहे पण्णते? गोयमा ! सोलसविधे पण्णत्ते, तंजहा–१ रयणकंडे, 2 वइरे 3 वेरुलिए, 4 लोहितयक्खे, 5 मसारगल्ले, 6 हंसगम्भे, 7 पुलए, 8 सोयंधिए, 9 जोतिरसे, 10 अंजणे, 11 अंजणपुलए, 12 रयए, 13 जातरूवे, 14 अंके, 15 फलिहे, 16 रिठेकंडे। इमोसे णं भंते ! रयणप्पभापुढवीए रयणकंडे कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते / एवं जाव रिठे। इमोसे णं भंते ! रयणप्पभापुढवीए पंकबहुले कंडे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते / एवं आवबहुले कंडे कतिविहे पण्णते ? गोयमा! एगागारे पण्णत्ते / सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवी कतिविधा पण्णता? गोयमा ! एगागारा पग्णत्ता / एवं जाव अहेसत्तमा / [69] भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! तीन प्रकार की कही गई है, यथा-१. खरकाण्ड, 2. पंकबहुलकांड और अपबहुल (जल की अधिकता वाला) कांड / भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का खरकाण्ड कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! सोलह प्रकार का कहा गया है, यथा 1. रत्नकांड, 2. वज्रकांड, 3. वैडूर्य, 4. लोहिताक्ष, 5. मसारगल्ल, 6. हंसगर्भ, 7. पुलक, 8. सौगंधिक, 9. ज्योतिरस, 10. अंजन, 11. अंजनपुलक, 12. रजत, 13. जातरूप, 14. अंक, 15. स्फटिक और 16. रिष्ठकांड / भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का रत्नकाण्ड कितने प्रकार का है ? गौतम ! एक ही प्रकार का है / इसी प्रकार रिष्टकाण्ड तक एकाकार कहना चाहिए। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का पंकबहुलकांड कितने प्रकार का है ? गौतम ! एक ही प्रकार का कहा गया है। इसी तरह अपबहुलकांड कितने प्रकार का है। गौतम! एकाकार है। भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी कितने प्रकार की है ? गौतम ! एक ही प्रकार की है। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक एकाकार कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org