Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
The third attainment in the fourfold attainment has discussed the three types of beings who have attained liberation from the cycle of birth and death. Now, the third attainment in the sequence is discussing the four types of beings who have attained liberation from the cycle of birth and death. Its initial aphorism is as follows:
**Four types of beings who have attained liberation from the cycle of birth and death** 65. Those who say that there are four types of beings who have attained liberation from the cycle of birth and death, they state it as follows: namely, **Nairyika**, **Tiryachyonika**, **Manushya**, and **Deva**. [65]
**What is the nature of Nairyika?** Nairyika are said to be of seven types, namely: **Prathama-Pruthvi-Nairyika**, **Dvitiya-Pruthvi-Nairyika**, **Tartiya-Pruthvi-Nairyika**, **Chaturtha-Pruthvi-Nairyika**, **Panchama-Pruthvi-Nairyika**, **Shashtha-Pruthvi-Nairyika**, and **Saptama-Pruthvi-Nairyika**. [66]
**O Bhagavan! What is the name and lineage of the first earth?** Gautama! The name of the first earth is **Dhamma** and its lineage is **Ratnaprabha**. [67]
**O Bhagavan! What is the name and lineage of the second earth?**
________________ चतुर्विधारया तृतीय प्रतिपत्ति द्वितीय प्रतिपत्ति में संसारसमापन्नक जीवों के तीन भेदों का विवेचन किया गया है। अब क्रम प्राप्त तीसरी प्रतिपत्ति में संसारसमापनक जीवों के चार भेदों को लेकर विवेचन किया जा रहा है / उसका आदिसूत्र इस प्रकार हैचार प्रकार के संसारसमापन्नक जीव 65. तत्थ जे ते एवमाहंसु-चउविहा संसारसमावष्णगा जीवा पणत्ता ते एवमाहंसु, तंजहा--नेरइया, तिरिक्खजोणिया, मणुस्सा, देवा। [65] जो प्राचार्य इस प्रकार कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव चार प्रकार के हैं, वे ऐसा प्रतिपादन करते हैं, यथा-नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव / 66. से कि त नेरइया? नेरइया सत्तविहा पण्णत्ता, तंजहा पढमापुढविनेरइया, दोच्चापुढविनेरइया, तच्चापुढविनेरइया चउत्थापुढविनेरइया, पचमापुढविनेरइया, छट्ठापुढविनेरइया, सत्तमा पुढविनेरइया / [66] नैरयिकों का स्वरूप क्या है ? नैरयिक सात प्रकार के कहे गये हैं, यथा-प्रथमपृथ्वीनरयिक, द्वितीयपृथ्वीनै रयिक, तृतीय पृथ्वीनरयिक, चतुर्थपृथ्वीनरयिक, पंचमपृथ्वीनैरयिक, षष्ठपृथ्वीनै रयिक और सप्तमपृथ्वी नैरयिक। 67. पढमा गं भंते ! पुढवी किनामा किंगोता पण्णता? गोयमा ! णामेणं धम्मा, गोत्तेणं रयणप्पभा / वोच्चा णं भंते ! पुढवी किनामा किंगोता पण्णता ? गोयमा ! णामेणं बंसा गोतेणं सक्करप्पभा ? एवं एतेणं अभिलावेणं सव्वासिं पुच्छा, णामाणि इमाणि सेला तच्चा, अंजणा चउत्थी, रिट्ठा पंचमी, मघा छट्ठी, माधवती सत्तमा जाव तमतमागोत्तणं पण्णत्ता। [67] हे भगवन् ! प्रथम पृथ्वी का क्या नाम और क्या गोत्र है ? गौतम ! प्रथम पृथ्वी का नाम 'धम्मा' है और उसका गोत्र रत्नप्रभा है / भगवन् ! द्वितीय पृथ्वी का क्या नाम और क्या गोत्र कहा गया है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org